बचपन

छिन चुका है बचपन यहाँ...
दादी नानी के कहानियाँ के किस्से तो अब किताबों में मिलते है....
कभी जगह थी गिल्ली डंडा की बचपन में...
अब तो सारे बच्चे कंप्यूटर के आगे मिलते हैं....
कभी होता थी गुड्डे गुड़ियों की शादी....
अब तो सिर्फ बार्बी डौल शोकेस में दिखती है...
वक़्त कहाँ है खेलने को अब...
सारे बच्चे ही तो किताबों में दबे मिलते हैं....
फूल तो मुरझा जाएँ बचपन में ही...
तो कहाँ वो खुशबू आगे देते हैं....
लौटा तो बच्चों को उन का बचपन....
क्यूंकि ये ही तो पूरा जग महका देते हैं....
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चाहत

चाहत न थी दुबारा कभी उस से मिलने की....
चाहत न थी दुबारा कभी उस को सुनने की .....
न चाहत थी कि कभी लफ्ज फिर आपस में टकराएँ ....
चाहत न थी उसे देख मेरे आँखों में फिर से आंसू आये.....
पर....उस के.... 
"मुझे माफ़ कर दो बिमल मै मजबूर हूँ "
कह देने से ही सब तार तार हो गया....  

  
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वजह



रोज उस राह में रुक कर इंतजार किया करते थे उन का ....
पर उन की एक ना ने ...
रुकने और पीछे मुड़ने की वजह ही ख़तम कर दी .......
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घर के भगवान्




इन धर्म के ठेकेदारों की बात मानता रहा मै जिंदगी भर ....
बेजान पत्थरों को भगवान् मानता रहा में जिंदगी भर ...
सोचा की खुदा तक पहुँचने का रास्ता सिर्फ इस की इबादत से ही है .....
और इस लिए अपने घर के भगवान् (माँ ,बाप)को पानी तक न पूछा जिंदगी भर ....
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तेरा तुझ को अर्पण



कतरा कतरा तुझ पे न्योछावर हो जाये मेरे खून का तब भी कोई गम नहीं

मेरे हर एक सांस तुझे फिर बचाने में लग जाये तब भी कोई गिला नहीं

जीवन दान कर दूँ तेरे लिए ये भी कोई बड़ा बलिदान न होगा

क्योंकि हर रोज प्रार्थना करते ये ही तो बोलते हैं हम...

तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा

ॐ जय जगदीश हरे.....

फिर अपनी बातों से पीछे क्यूँ हटना???






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ख्वाइश....





चाहत थी तुझ से कल मिलने की...
सोचा था भूल चूक की माफ़ी मांग लूँगा...
चाहत थी आखिरी बार तुम्हे देखने की...
सोचा कम से कम चेहरा तो दिल में उतार लूँगा
चाहत थी कुछ लफ्ज बदल लें आखिर में...
सोचा कम से कम जिंदगी तो गुजर ही लूँगा
पर मैने खुद सोचा आखिर में मिलने से पहले ये
गढ़े मुर्दे उखाड़ा नहीं करते...
समय के पन्ने दुबारा पलटा नहीं करते...
बस इतनी दुआ रब से मांग कर...
की सलामत और खुश रहे तू सदा ....
अपनी ये ख्वाइश अधूरी ही छोड़ दी.....


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दिल





दिल है मेरे पास जो .....
दर्द उस में भी होता है.....
धड़कता है वो भी दिन रात तुम्हारे लिए...
अकेलेपन से उस का भी सामना होता है...
चाहे भीड़ में खुशियौं से लबरेज दिखता हो ये सब को
पर अकेले में खून के आंसूं ये भी रोता है
मुझे मालूम नहीं सोच क्या है तुम्हारी??
पर याद रखना सच्चा प्यार खुदा होता है....
कब होगी तुम्हे कद्र मेरे मुझे अंदाजा भी नहीं...
पर याद रखना सिर्फ इस बात को...
कोई एक दिल है इस दुनिया में....
जो तुम्हारे लिए हर पल जागे और कभी सपने में भी नहीं सोता है.....
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अलग है






सब के सपने अलग हैं,

सब के अरमान अलग हैं...

सब की जमीं अलग हैं,

सब के आसमान अलग हैं...
सब का नजरिया अलग है,
और सब की अपनी अपनी पहचान अलग है....
तो क्यूँ कैद करते हो किसी के हुनर को?

क्यूँ कतरते हो किसी के पंखो को??
सब के पंख अलग हैं....

पंखो कि उड़ान अलग है...

उड़ने दो उन्हें खुद कि सोच से,

सब के पंखो कि उड़ान अलग है......

उन पंखो से उसकी पहचान अलग है.....

अलग अलग सोच के आसमान अलग है....


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हल्ला बोल



कब तलक कुवें के मेंढक, बन के दिन गुजारेंगे ...
कब तलक गिरती लाशों पर, आंसू हम बहायेंगे ?
कब तलक कहेंगे यूँ, कि देश ने क्या दिया है हमें ?
कब तलक कसाब जैसों को पाल कर साँप को दूध पिलायेंगे ?

कब तलक देंगे रिश्वत हम ?
कब तलक मंहगाई सह पाएंगे ?
कब तलक होंगे पैदा होंगे कलमाड़ी ?
कब नींदों से हम जाग पाएंगे ?

कब तलक सही लोकपाल बनेगा ?
कब तलक महिला होंगी चूल्हे चार दिवारी से बाहर ?
कब तलक छोड़ेंगे हम जात पात पर लड़ना ?
फिर कब तलक जगत गुरु बनेंगे हम ??

महसूस हुआ हो कुछ अगर तो ..
दिल और दिमाग कह रहा हो कुछ अगर तो ...
अगर लग रहा हो इंसान हैं हम ...
तो मिटा दे बुराइयों को ...आगे तो बढ़ ...
हम सब हैं न साथ तेरे ....
हल्ला तो बोल .... जरा जोर से तो बोल
हल्ला बोल....
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मौत...




सारी उम्र किसी के साथ को तरसा...
सारी उम्र एक आस को तरसा ...
मुझे मालूम न था...
मौत इतनी हसीन होती है ....
हजारों का कारवां था मेरे जनाजे के साथ..
जिस के लिए मै दिन रात आखिरी सांस तक तरसा....
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मै तलाशता खुद को...




मै तलाशता खुद को ...
कभी सागर की गहराई में....
कभी पहाड़ो की ऊंचाई में...
कभी बादलों की काली घटाओ में...
कभी सावन में महकती लताओं में ...
मै तलाशता खुद को...
कभी ऑरकुट के अंधियारे में..
कभी फेसबुक के उजाले में...
कभी गूगल में खोजता खुद को ...
कभी याहू में खुद को तलाशता ....
कभी मंदिरों में भगवान् से पूछता...
कभी मस्जिद में खुद को खोजने की फ़रियाद करता...
हजारों मन्नतें मांगी गुरूद्वारे में...
और यीशु से भी खुद का पता पूछा...
मै तलाशता खुद को...
दिन के उजाले में बाजारों में खोजता
रात में शान्त सडको पे देखता....
हर गली हर मुहल्ले हर जगह देखता खुद को...
कंही तो मिलूं मै...
मै तलाशता खुद को...
हजारों कब्रे खोदी...
हजारों भूतों से तक मिला..
पर फिर भी न पा सका खुद को
मै अब भी तलाशता खुद को...
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निचले तबके के लोग...


ना रहने का ठिकाना... भाग्य है सूना विराना...
ना खाने को अन्न...ना खरीदने को धन..
क्योंकि वे हैं सिर्फ निचले तबके के लोग...

ना सोचने को दिमाग..
ना दिनभर मांगी भीख का हिसाब
ना पहनने को लिबाज..
ना अपने से कोई इच्छा ना खुद से कोई आस..
हो भी क्योँ ?
क्योंकि वे हैं सिर्फ निचले तबके के लोग...

हर रात ना है कोई उजाले का सहारा...
उन झुग्गी झोपडियौं में ना है किसी प्रकाश का इशारा...
दिन भर की भीख को शराब में डुबो दिया...
बीवी बच्चो को खुद कमाने छोड़ दिया....
मुझे कुछ भी सहानुभुति नहीं...
क्योंकि वे हैं सिर्फ और सिर्फ निचले तबके के लोग...
और जिंदगी भर रहेंगे सिर्फ और सिर्फ निचले तबके के लोग...
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कालका मेल ...



कालका मेल ...
मेरी जिंदगी में काल बन के आई .....
कालका मेल ...
सब कुछ छीन लिया मुझ से तूने....
किस जगह ला कर खड़ा कर दिया तूने मुझे ..
सब रास्ते ...सारी मंजिले बंद कर दी तूने मेरी ..
कितनी खुश थी में आज ....
मम्मी ... पापा ... भाई ..
सब नानी के घर जाने को चढ़े थे ...
छुट्टिया ख़त्म होने को थी ...
और हम दोनों को कॉलेज वापस जाना था ..
सोचा नानी के घर ही हो आऊं..
सब को साथ लिया और चल पड़ी ...
मौत के सफर में ...
जिंदगी की सारी खुशियों के आखिरी सफर में ...
चंद दूर ही पहुचे थे कि...
वो हुआ ...जिससे ...सब कुछ बिखर गया ....
ख़त्म हो गया मेरा परिवार ...
लाशे पड़ी थे सब की मेरे सामने ....
कितनी बदनसीब थी ...
सब कुछ ख़त्म एक झटके में .....
चारों तरफ चीत्कार मची थी ..
लाल रंग तो मानो यूं गिरा था जैसे होली खेली हो किसी ने ...
ना भाई बचा ... ना माँ ..ना पापा ..
मुझे क्यूँ छोड़ दिया भगवान् तूने ...
किस के सहारे जियूंगी में ? किस से लडूंगी अब में ??
कौन मुझे सम्हालेगी ??कौन मुझे डॉटेगी ??
अब कौन कहेगा मुझे बेटा पढ़ लो ??
सारी खुशिया ..सारे सपने ..
एक पल में चकनाचूर ...
चंद पल में अनाथ कर दिया तूने मुझे ..
क्या कुसूर था मेरा ???
किसे दोष दू ??
ट्रेन को? ड्राईवर को? भगवान् को? या अपनी किस्मत को ?
और मेरे जैसे उन बेकसूर लोगो का क्या .??
किसी ने मुझ जैसे माँ ..बाप ..भाई ..खोये ...
और किसी ने अपना पति ..बेटा ..अपना सगा ...
भगवान् वाकई बेरहम है तू ...
जिंदगी भर शिकायत रहेगी मुझे ...
मुझे भी लील लेता ..मुझे क्यूँ छोड़ा ????
क्यूँ छोड़ा मुझे अकेले ....यहाँ ...
और किस के भरोसे????
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रात....



रात का स्याहपन......
ख़ामोशी... शांति.... सरसराहट....
असीम सुख का एहसास लिए है रात....
चन्द्रमा की शीतलता... और तारो का झिलमिलाना...
अदभुत उत्साह भरता है मन में.....
दिन भर की भाग दौड़.... हू हल्ला..... धुंआ ... प्रदूषण....
पर रात में सब कुछ स्याह..... सब कुछ अँधेरे में गुम....
और एक अजीब सी आतुल्य शांति का एहसास.....
ये ही तो चाहिए दिन के अंत में.....
शांति..... सुख.... सर्वर्त्र ....
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कसूर





क्या कसूर है मेरा ?

जो तुम मुझे मार देना चाहते हो .....

क्या कसूर है मेरा ?

जो तुम मुझे जागने से पहले ही सुला देना चाहते हो ....

अगर लड़की होना जुर्म है मेरा ....

तो इसमें सारा पापा का दोष है ....

क्या मेरे लड़की होने का माँ तुझे भी अफसोश है ?

याद रखो पापा तुम .....

लड़की न होती तो तुम भी न होते ....

और न ही अपनी जवानी में मम्मी से शादी करने के सपने संजोते .....

अभी भी समय है ... मेरे हत्या मत करवाओ ....

और एक हत्या का पाप अपने सर लगने से बचाओ ....
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वैश्या



वैश्या
वैश्या हूँ मै वैश्या...
अलग जिंदगी जीती
अपने जिस्म से खुद को पालने की कोशिश करती
पैसा तो कमाया पर इज्ज़त न कमा सकी
इज्ज़त कमाती भी कैसे???
दुनिया के सबसे इज्ज़तदार ही तो मेरे ग्राहक हैं
वो ही लूट ले जाते हैं मेरी इज्ज़त
क्या करें जीना तो है ही हमे
चाहे इन बदनाम गलियों में ही क्यूँ न जीना पड़े
सोचा न था कभी कोठे पे आउंगी 
पर मेरी किस्मत मुझे यहाँ ले आई
किसी ने बेच जो दिया था मुझे यहाँ
इस मौसी के हाथों...
क्या करती ???
कहाँ जाती ???
बेबस...
लाचार.....
क़ोसिस की वापस जाने की...
पर इन इज्ज़तदारो ने ही मुझे....
समाज में मिलने न दिया
इन्होने ही मुझ से खेला था...
मेरी मासूमियत को नोचा था
खैर... अपना लिया इस धंधे को मैंने
 क्या करें...
गन्दा है पर धंधा है ये...
बेटा हुआ तो भडवा(दलाल) बनेगा...
और बेटी...
मुझ जैसे ही कईयों का दिल बहलाएगी...
मुझे नहीं पता आखिरी क्या मंजिल है मेरी
पर सिर्फ इतना कहूँगी
इन इज्ज़त वालों ने इज्ज़तदार कहलाने के लिए
मेरी इज्ज़त लुटा दी
सोना  गाछी हो या जी.बी रोड
सब जगह एक ही कहानी है
चारदिवारी में कैद हमारी ये जिंदगानी है...
और जिंदगी की आखिरी रात भी हमे यहीं बितानी है
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Burka......




Burka...
Mere ijjat... mere majhab ko darsta..
Muje sab ki nigaho se bchata....
Muje ek alag pahchan dilate...
Mera burka...
Jab hosh samhala mene...
Ye muje mere ammi ne diya..
matlab chahe bhale he na pta tha muje is ka..
par tab muje ye accha lagta tha.
.kyuki sab pahnti the ise..
khala..ammmi..fufi..chachi....appi...
Par muje is k peeche k dard ka tab ehsaas na tha..
Sab se juda kar diya is ne muje..
Keid kar diya... chaar diwari me..ak libaaj ne muje...
Na kanhi ja sakti, aur na hi rahmaan k sath khel sakti...
Jise ab tak na jati pta the... na dharm...
Ab us ki kwal ek hi jaati aur ek hi dharm tha ....
Ye burka.....burka...
Is burke k andar ki duniya bilkul alag the...
Jab se is libaaj k andar gye hu...
Sayad mere sohar ne he hi muje is se juda dekha hoga...
Ek kale rang ka parda mere aur is duniya k beech...
Na wo duniya mere pass aa sakti h...
aur na is burke ko laangh me us duniya me hi ja sakti hu..
kabhi gum tha muje is gulami ka...par ab ye hi muje sukun deta h
mere rooh ko khuda se milata h...muje in janjalo se aajad krata h...
ya allah... mene puri zindgi to ise pahna ...
par apni beti ko ye tohfa kabi na dungi...
udne dungi me use khule aasman me..
milne dungi puri duniya se...
rang bhar sakegi wo apni duniya me khud....
islaam ka matlb khuda ki ibadat h..
khuda k naam pe kisi ki aajadi pe pabandi lgana nahi...
islaam khuda h... keid nahi...
burka..ab ek majburi hai...
khud ko bchane k liye...khuda se nahi...
majhab k thekedaro se.......
mana burka adab h..ijjat h...pahchan h...
par mat bhulo ye hume sari duniya se alag bi to karta h...
kam se kam jo tum ne sha.. apni agli pedhi ko to ye tohfa mat do...
kadr karo us ki...par khed mat karo khud ko us me....
burka....
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duniya gol aur bhut choti h....


jab bichde the un se.....
socha na tha fir mulakaat hoge....
na labo par fir kushi hogi.....
na fir jine ki aas hoge.....
na dil fir se dhadkega....
na jajbaato ki baaris hogi...
.
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par ....par....
bhul gya tha duniya bhut choti aur gol h...
ummed na the zindgi k is mod par un se fir mulakaat hogi.....
.
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har waqt....



har waqt chadar choti padti h ....
kitna kabu rakhu khud pe...
har bdi kushi k baad...
wo bhi choti lagti h....
kami muj me h... ya mere khwaiso me..
kyunki har khwais k baad muje apni chadar choti lagti h.....
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Jawab....









mere khamosh tabiyat par tanj karne walon.....
.
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har ineet ka jwab patthar nahi hota.....
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Jajbaato ka khel....



सब कुछ सह के कुछ न कहना मुझ को अच्छा लगता है ...

उस को पाने का खाव्ब ...एक खाव्ब सा मुझ को लगता है ....

बिखर चूका एक खाव्ब ...जो खाव्ब था उस को पाने का ...

अब तो वो खाव्ब कुछ सच्चा कुछ झूठा मुझ को लगता है ...

जज्बातों का खेल ही सच्चा लगता है .....

इस के साथ ही जीना...और..मरना अच्छा लगता है



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dur tak us raah me........





dur tk us raah me sirf me khada tha....
manzile anjaan na khud ka pta tha...
man k apne biswas se uthaya jo pahla kdam....
dekha mere sath pura hujum khada tha....


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bheed me khada hu me.....


bheed me akele khada hu me...

har raah me tere tanha khada hu me...

tera sath chahta har pal me.....

tere raah takta har pal me...

tu bsi h dil aur sanso me...

ek tak niharta har pal me...

Kyun...aakhir kyun?????

tere aawaj bhulaye sb kuch muje...

tere sanse ...smjaye sb kuch muje...

mere hosh fakhta rhte h...

din raat fraq na aaye muje....

kyun... Aakhir kyun...

ab kuch aur kya mangu us khuda se me...

sirf tuje he mangu khuda se me...

na koi khawab tb mere rhte h....

na koi justju tb bchti h...

chahiye muj ko..........

sirf tu........ sirf tu.... Sirf tu.............
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तू



बढ़ता  जाता  है  प्यार  तुझ  से ....
जब  भी  नफरत  करने  को  दुनिया  मुझे  कहती  है ....
खो  जाता  हूँ  तेरी  अच्छाइयों  में  ....
जब  भी   दुनिया  बुराई  मुझ  से  तेरी  करती  है .....
मुझे  मालूम  है .....मालूम  है  मुझे ....
मजबूर  है  तू  मुझ  से  ज्यादा ....
दिखाती   है  दुनिया  को  की  नफरत  है  मुझ  से ....
पर  दिल  ही   दिल  में  बेइन्तहा  प्यार  सिर्फ  मुझ  ही   से  करती  है .....

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Khuddar.....



hum un ki ek aawaj k liye....


tarse barso...tadfe barso...


par......


hum be kam khuddar na the...
jb us ne hume pukara...to mud k tk na dekha usko...
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Ja rahe hai....



ja rhe h hum tere gliyo se.....


na jane fir kab mulakat hogi......


in yaado ko kaise nikalenge dil se.....


jane kab un yaado ki saam hogi.....


hum to un yaado k sahare hi ji lenge....


par tum batao humare bina tumhare kya halat hogi.......
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पता...


ना रहा तुझ से मेरा कोई नाता...
ना दिलों का ही कोई मेल है...
ना जज्बात ही मिलते हैं अब..
ना ख्वाबों का ही कोई खेल है.... 
पर दुनिया अब भी....पर दुनिया अब भी....
          तुझ से मेरा और मुझ से तेरा पता पूछती है......     
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kyun???






Sadke viran kyun h?


Raste bejuban kyun?


Kal tk to pahchanta tha muje harkoi......


par aaj sb ki njre muj se anjaan kyun hai??


sirf itna khne se ki tu mere hai......


isme itna sb hairaan kyun hai?


Ji lene do do pal zindgi hume be...


mere kusiyo se sb itna paresan kyun hai?
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Kyun roi?



Tuje btaya..
Par tuje ykin ni aaya...
tuje smjaya..
par tuje smaj ne aaya...
mere har baat k tere liye mayne na the...
... mere ek choti kushi tk k tuj pe bhane na the...
jb aakir tk tera mera koi nata na tha to
....to...
kyun aansu gire tere?
jb tere jaan bchane ko...
mene khud 4 kandho se nata jod liya........
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जज्बात-ए-बिमल

मै अकेला उस राह में ...
काफी आगे निकल आया ....
कहने को तो छोड़ दिया था सब कुछ ...
पर अपनों को काफी दुःख दर्द दे आया....
हम चाह कर भी इस दुनिया में अकेले नही हो सकते ....
क्यूंकि पैदा होते ही वो हजारो रिस्तो से जुड़ आया .....
इसे हम अपनी ताकत समझे या लोगों के दिलो का मेल .....
कि एक अनजान रास्ते से भी इक अजनबी मुझे मेरी मंजिल मेरे घर छोड़ आया ......
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Tere khwais....


tera khwais kya h mere aage..........
tere justju kya h mere aage...........
tere tmanna kya h mere aagee.........
sirf ye hi na ki me tera ho jaun?
sirf ye hi na ki me tuj me kho jaun?
sirf ye he na ki me tuj me sma jaun?
intjar kar .............kar intjar us din ka....
jab tak khud khuda na khhe....
"KI BIMAL TUM IS K HO JAO"
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talash



kya nhi h mere pass..............
aur kya khass h us k pass.................
rupiya...paisa...dhan aur daulat......
maan...maryada....aiso-aaram....
yash.... sfalta.....kitabi gyan.....
nhi the to muj me man ki santi.....
aur ab h muje sirf ek adad santi ki talash............
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