हल्ला बोल



कब तलक कुवें के मेंढक, बन के दिन गुजारेंगे ...
कब तलक गिरती लाशों पर, आंसू हम बहायेंगे ?
कब तलक कहेंगे यूँ, कि देश ने क्या दिया है हमें ?
कब तलक कसाब जैसों को पाल कर साँप को दूध पिलायेंगे ?

कब तलक देंगे रिश्वत हम ?
कब तलक मंहगाई सह पाएंगे ?
कब तलक होंगे पैदा होंगे कलमाड़ी ?
कब नींदों से हम जाग पाएंगे ?

कब तलक सही लोकपाल बनेगा ?
कब तलक महिला होंगी चूल्हे चार दिवारी से बाहर ?
कब तलक छोड़ेंगे हम जात पात पर लड़ना ?
फिर कब तलक जगत गुरु बनेंगे हम ??

महसूस हुआ हो कुछ अगर तो ..
दिल और दिमाग कह रहा हो कुछ अगर तो ...
अगर लग रहा हो इंसान हैं हम ...
तो मिटा दे बुराइयों को ...आगे तो बढ़ ...
हम सब हैं न साथ तेरे ....
हल्ला तो बोल .... जरा जोर से तो बोल
हल्ला बोल....
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मौत...




सारी उम्र किसी के साथ को तरसा...
सारी उम्र एक आस को तरसा ...
मुझे मालूम न था...
मौत इतनी हसीन होती है ....
हजारों का कारवां था मेरे जनाजे के साथ..
जिस के लिए मै दिन रात आखिरी सांस तक तरसा....
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मै तलाशता खुद को...




मै तलाशता खुद को ...
कभी सागर की गहराई में....
कभी पहाड़ो की ऊंचाई में...
कभी बादलों की काली घटाओ में...
कभी सावन में महकती लताओं में ...
मै तलाशता खुद को...
कभी ऑरकुट के अंधियारे में..
कभी फेसबुक के उजाले में...
कभी गूगल में खोजता खुद को ...
कभी याहू में खुद को तलाशता ....
कभी मंदिरों में भगवान् से पूछता...
कभी मस्जिद में खुद को खोजने की फ़रियाद करता...
हजारों मन्नतें मांगी गुरूद्वारे में...
और यीशु से भी खुद का पता पूछा...
मै तलाशता खुद को...
दिन के उजाले में बाजारों में खोजता
रात में शान्त सडको पे देखता....
हर गली हर मुहल्ले हर जगह देखता खुद को...
कंही तो मिलूं मै...
मै तलाशता खुद को...
हजारों कब्रे खोदी...
हजारों भूतों से तक मिला..
पर फिर भी न पा सका खुद को
मै अब भी तलाशता खुद को...
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निचले तबके के लोग...


ना रहने का ठिकाना... भाग्य है सूना विराना...
ना खाने को अन्न...ना खरीदने को धन..
क्योंकि वे हैं सिर्फ निचले तबके के लोग...

ना सोचने को दिमाग..
ना दिनभर मांगी भीख का हिसाब
ना पहनने को लिबाज..
ना अपने से कोई इच्छा ना खुद से कोई आस..
हो भी क्योँ ?
क्योंकि वे हैं सिर्फ निचले तबके के लोग...

हर रात ना है कोई उजाले का सहारा...
उन झुग्गी झोपडियौं में ना है किसी प्रकाश का इशारा...
दिन भर की भीख को शराब में डुबो दिया...
बीवी बच्चो को खुद कमाने छोड़ दिया....
मुझे कुछ भी सहानुभुति नहीं...
क्योंकि वे हैं सिर्फ और सिर्फ निचले तबके के लोग...
और जिंदगी भर रहेंगे सिर्फ और सिर्फ निचले तबके के लोग...
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कालका मेल ...



कालका मेल ...
मेरी जिंदगी में काल बन के आई .....
कालका मेल ...
सब कुछ छीन लिया मुझ से तूने....
किस जगह ला कर खड़ा कर दिया तूने मुझे ..
सब रास्ते ...सारी मंजिले बंद कर दी तूने मेरी ..
कितनी खुश थी में आज ....
मम्मी ... पापा ... भाई ..
सब नानी के घर जाने को चढ़े थे ...
छुट्टिया ख़त्म होने को थी ...
और हम दोनों को कॉलेज वापस जाना था ..
सोचा नानी के घर ही हो आऊं..
सब को साथ लिया और चल पड़ी ...
मौत के सफर में ...
जिंदगी की सारी खुशियों के आखिरी सफर में ...
चंद दूर ही पहुचे थे कि...
वो हुआ ...जिससे ...सब कुछ बिखर गया ....
ख़त्म हो गया मेरा परिवार ...
लाशे पड़ी थे सब की मेरे सामने ....
कितनी बदनसीब थी ...
सब कुछ ख़त्म एक झटके में .....
चारों तरफ चीत्कार मची थी ..
लाल रंग तो मानो यूं गिरा था जैसे होली खेली हो किसी ने ...
ना भाई बचा ... ना माँ ..ना पापा ..
मुझे क्यूँ छोड़ दिया भगवान् तूने ...
किस के सहारे जियूंगी में ? किस से लडूंगी अब में ??
कौन मुझे सम्हालेगी ??कौन मुझे डॉटेगी ??
अब कौन कहेगा मुझे बेटा पढ़ लो ??
सारी खुशिया ..सारे सपने ..
एक पल में चकनाचूर ...
चंद पल में अनाथ कर दिया तूने मुझे ..
क्या कुसूर था मेरा ???
किसे दोष दू ??
ट्रेन को? ड्राईवर को? भगवान् को? या अपनी किस्मत को ?
और मेरे जैसे उन बेकसूर लोगो का क्या .??
किसी ने मुझ जैसे माँ ..बाप ..भाई ..खोये ...
और किसी ने अपना पति ..बेटा ..अपना सगा ...
भगवान् वाकई बेरहम है तू ...
जिंदगी भर शिकायत रहेगी मुझे ...
मुझे भी लील लेता ..मुझे क्यूँ छोड़ा ????
क्यूँ छोड़ा मुझे अकेले ....यहाँ ...
और किस के भरोसे????
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रात....



रात का स्याहपन......
ख़ामोशी... शांति.... सरसराहट....
असीम सुख का एहसास लिए है रात....
चन्द्रमा की शीतलता... और तारो का झिलमिलाना...
अदभुत उत्साह भरता है मन में.....
दिन भर की भाग दौड़.... हू हल्ला..... धुंआ ... प्रदूषण....
पर रात में सब कुछ स्याह..... सब कुछ अँधेरे में गुम....
और एक अजीब सी आतुल्य शांति का एहसास.....
ये ही तो चाहिए दिन के अंत में.....
शांति..... सुख.... सर्वर्त्र ....
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कसूर





क्या कसूर है मेरा ?

जो तुम मुझे मार देना चाहते हो .....

क्या कसूर है मेरा ?

जो तुम मुझे जागने से पहले ही सुला देना चाहते हो ....

अगर लड़की होना जुर्म है मेरा ....

तो इसमें सारा पापा का दोष है ....

क्या मेरे लड़की होने का माँ तुझे भी अफसोश है ?

याद रखो पापा तुम .....

लड़की न होती तो तुम भी न होते ....

और न ही अपनी जवानी में मम्मी से शादी करने के सपने संजोते .....

अभी भी समय है ... मेरे हत्या मत करवाओ ....

और एक हत्या का पाप अपने सर लगने से बचाओ ....
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वैश्या



वैश्या
वैश्या हूँ मै वैश्या...
अलग जिंदगी जीती
अपने जिस्म से खुद को पालने की कोशिश करती
पैसा तो कमाया पर इज्ज़त न कमा सकी
इज्ज़त कमाती भी कैसे???
दुनिया के सबसे इज्ज़तदार ही तो मेरे ग्राहक हैं
वो ही लूट ले जाते हैं मेरी इज्ज़त
क्या करें जीना तो है ही हमे
चाहे इन बदनाम गलियों में ही क्यूँ न जीना पड़े
सोचा न था कभी कोठे पे आउंगी 
पर मेरी किस्मत मुझे यहाँ ले आई
किसी ने बेच जो दिया था मुझे यहाँ
इस मौसी के हाथों...
क्या करती ???
कहाँ जाती ???
बेबस...
लाचार.....
क़ोसिस की वापस जाने की...
पर इन इज्ज़तदारो ने ही मुझे....
समाज में मिलने न दिया
इन्होने ही मुझ से खेला था...
मेरी मासूमियत को नोचा था
खैर... अपना लिया इस धंधे को मैंने
 क्या करें...
गन्दा है पर धंधा है ये...
बेटा हुआ तो भडवा(दलाल) बनेगा...
और बेटी...
मुझ जैसे ही कईयों का दिल बहलाएगी...
मुझे नहीं पता आखिरी क्या मंजिल है मेरी
पर सिर्फ इतना कहूँगी
इन इज्ज़त वालों ने इज्ज़तदार कहलाने के लिए
मेरी इज्ज़त लुटा दी
सोना  गाछी हो या जी.बी रोड
सब जगह एक ही कहानी है
चारदिवारी में कैद हमारी ये जिंदगानी है...
और जिंदगी की आखिरी रात भी हमे यहीं बितानी है
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