पहले वो मेरे शहर में आये, लोगों को मारने लगे,
मैंने कुछ नहीं किया ...
फिर वो मेरे मोहल्ले में आये,
मैंने कान बंद कर लिए...
फिर वो मेरी गली में आये,
मैंने आखे बंद कर ली...
जब वो मेरे घर में आये,
तो मुझे बचाने वाला कोई नहीं था !
द्वितीय विश्वयुद्ध की इस कविता से मैं तब रूबरू
हुआ था जब अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन चल रहा था | इस कविता में
कही बातें समाज का वो आईना है जिस पर पर्दा डाल कर हम उससे किनारा तो कर सकते हैं
पर वो पर्दा कभी न कभी आईने से हटेगा और जब तक हम उस सच को समझें तब तक शायद बहुत
देर हो जाए |
गौरी लंकेश की हत्या एक अलार्म है | ये अलार्म
पहले भी बजते आये हैं कभी राम रहीम केस को सामने लाने वाले रामचंद्र छत्रपति,कभी मलेशप्पा कलबुर्गी और कभी नरेंद्र दाभोलकर की हत्या से पर हम ध्यान नहीं देते क्यूंकि ये मुद्दे नहीं हैं |
इस बार अलार्म ज्यादा खतरनाक है | इस बात से नहीं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ख़त्म हो रही है बल्कि इस बात
की कि हमारा समाज बड़ी तेजी से वैचारिक शून्य भीड़ में बदलता जा रहा है | हम क्यूँ
अपने मुद्दों के लिए नहीं सवाल करते ? कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से
लेकर गोवाहटी तक हम लाखों मुद्दों से जूझ रहे हैं पर एक तंत्रगत ब्यवस्था के तहत
हमें सोचने के लिए मजबूर किया जा रहा है कि हमारा धर्म खतरे में हैं और ये सब मुद्दे
गौण हैं अभी हमें धर्म बचाना है |
किसान खेती छोड़ रह है , हमारी शिक्षा ब्यवस्था
दुनिया में कोई स्थान नहीं रखती , देश के अन्दर गरीब आदिवासियों को गोलियों से भूना
जा रहा है , बात बात पर गलियों में भीड़
उग्र हो कर किसी न किसी को मौत के घाट उतार रहे है , पर हम इन सब बातों को बहस के
केंद्र में नहीं लाना चाहते |
कौन है वो लोग जो इतनी उग्रता समाज में फैला रहे
हैं ? कौन है वो लोग जो हर मौत को जस्टिफाई कर रहे हैं ? कौन हैं वो लोग जो समाज
की सच्चाई सामने लाने पर गोलियों से भून रहे हैं ? कौन हैं वो लोग वो भारत माता की
जय के नारे लगा कर औरतों को रंडी ,वैश्या,छिनाल लिख रहे हैं ?
फेसबुक ,ट्विटर पर इतना लम्बा लम्बा कंटेंट कहाँ
से आ रहा है ? कोई तो लिख रहा होगा और संस्थागत तरीके से लिख रहा होगा | घटना के
बाद घंटे भर में कैसे फेसबुक और ट्विटर का नीलापन जज्बातों के उमाड़ से बहने लगता
है ? अगर वो कंटेंट मैं और आप अपने नाम से नहीं लिख रहे तो वो गुमनाम कौन लेखक है
जो इतना जहर अपने हलक से उगल रहा है और हम धडाधड उसे शेयर कर रहे हैं |
दोषी कौन है ? केंद्र सरकार या राज्य सरकार या
हम खुद ? क्या हम जो सोशल मिडिया पर फैला रहे हैं क्या हम वही बातें अपने परिवार
के साथ साझा कर सकते हैं ? अगर किसी लड़की को हम रंडी या वैश्या कह रहे हैं तो क्या
हम यही शब्द अपनी माँ,बहन या बेटी के लिए सुन सकते हैं ? अगर नहीं तो हम दोगला
ब्यवहार कर रहे हैं समाज में |
सरकारों को चुनने में समझदारी दिखाओ | क्यूंकि आज जो खुद को स्थापित करने के लिए साम दाम
दंड भेद का सहारा ले सकते हैं उन्हें कल जरूरत पड़ने पर तुम्हें भीड़ से कुचलवाने
में वक़्त नहीं लगेगा |
विचारों को मत मरने दो , उन्हें स्थापित करो ,सवाल करो, सवालों को ख़त्म मत करो , सवाल पूछने वालों को ख़त्म मत करो | भीड़ का हिस्सा मत बनो क्यूंकि आज तुम भीड़ से अलग होकर अपनी बात नहीं कही तो कल तुम्हारी कहानी सुनने वाला कोई नहीं होगा | आज गौरी लंकेश थी कल तुम होंगे और तुम ये भी नहीं कह पाओगे कि मैंने कभी कुछ नहीं कहा क्यूंकि वो इसी लिए हो रहा होगा क्यूंकि तुमने कभी कुछ नहीं कहा |
विचारों को मत मरने दो , उन्हें स्थापित करो ,सवाल करो, सवालों को ख़त्म मत करो , सवाल पूछने वालों को ख़त्म मत करो | भीड़ का हिस्सा मत बनो क्यूंकि आज तुम भीड़ से अलग होकर अपनी बात नहीं कही तो कल तुम्हारी कहानी सुनने वाला कोई नहीं होगा | आज गौरी लंकेश थी कल तुम होंगे और तुम ये भी नहीं कह पाओगे कि मैंने कभी कुछ नहीं कहा क्यूंकि वो इसी लिए हो रहा होगा क्यूंकि तुमने कभी कुछ नहीं कहा |