10 ईयर चैलेन्ज और मैं


सोशल मीडिया बहुत मजेदार चीज है और जैसे हर चीज के फायदे नुकसान होते है वैसे ही ये प्लेटफॉर्म भी है | खैर भारत जैसे देश ने अभी एक मी टू मूवमेंट देखा उस से बहुत पहले अन्ना का इतना बड़ा आन्दोलन हो या दामिनी केस का जनाक्रोश उस में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा रोल रहा | अचानक कुछ दिनों से फेसबुक भरा पड़ा है 10 ईयर चैलेन्ज से , जिसमें अधिकतर लोग अपनी फोटो पोस्ट कर रहे हैं कि वो 2009 में ऐसे दिखते थे और 2019 में ऐसे दिखते थे |  
एक ही दिन में जब मैंने ज्यादा इस तरह की पोस्ट देख ली तो लगा कि मैं भी देखूं मैं कितना बदला हूँ | लैपटॉप के फोल्डर खोल के पुराना फोटो देखा तो लगा ज्यादा नहीं ही बदला हूँ तो फोटो पोस्ट करने का मन नहीं हुआ पर सोचने को मजबूर हुआ कि क्या बदला है पिछले दस सालों में ? मैं ? मेरी शक्ल ? मेरी अक्ल ? मेरे आसपास की चीजें ?
पिछले डेढ़ महीने से घर में ही हूँ , एक दिन एक बच्चा हमारे घर आया मैंने जब अपनी पडोसी दीदी को पूछा कौन है ये ? तो दीदी ने एक नाम लेकर कहा कि ये उस का लड़का है , मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि इसकी माँ भी इस मुहल्ले तक़रीबन इतनी ही आई थी हाँ चाहे भले ही वो 10 ईयर चेलेंज से थोडा ज्यादा बड़ी बात हो पर फिर भी लगा कि वक़्त बदलने में वक़्त कम लगता है |
ज़िन्दगी की किस्सागोई में एक किस्सा याद आता है कि
मैंने कहा - कहाँ हो ?
वो बोली - बस में....
मैंने फिर धीरे से कहा - किसके ???
और शोरगुल के बीच ख़ामोशी छा गयी | पिछले दस सालों में न जाने कितनी खामोशियाँ छा गयी , पर मुझे लगता है ये खामोशियाँ वक़्त के साथ कभी कभी आईने के सामने खड़े होने पर हम से रूबरू होती है | मैं कई ऐसे घरों को जानता हूँ जहाँ बैठ कर मैंने चाय पी है पर पिछले दस सालों में वो घर कहानियों का हिस्सा बन गये और अब कोई वास्ता नहीं है |
2009 में मैं फार्मेसी कर रहा था (जो मैंने पूरी नहीं की और फाइनल ईयर में छोड़ दी खैर...) मैं तब सोचता था कि यार चार साल की फार्मेसी कर लूँगा फिर दो साल का एम् फार्मा. उस के बाद दो साल की नौकरी करूँगा और फिर शादी कर लूँगा और हो गयी ज़िन्दगी सेट | ये कहानी मैं कई बार सुनाता भी हूँ मुझे हँसी भी आती है कि 2009 में सोची गयी कहानी के हिसाब से 2016 में शादी हो गयी होती और यहाँ तक कि लाइफ सेट हुए भी 3 साल हो चुके होते पर शायद ज़िन्दगी का ये 10 ईयर चैलेन्ज कोई और कहानी चाहता है | अगर 10 ईयर चेलेंज में देखूं तो केवल घर वाले बचे हैं और मेरे चार दोस्त बाकी सब कुछ बदल गया |
10 ईयर चैलेन्ज को गौर से देखता हूँ तो अच्छा ही लगता है शायद ये मौका है पीछे पलट के देखने का पर अफ़सोस हम सिर्फ पलट के देख ही सकते हैं चीजों को ठीक करने की गुंजाइश तो कब की ख़त्म हो चुकी है |
पिछले 10 सालों में कई फ्रेम बदले और अमिताभ बच्चन के ऐड की तरह “कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में” से प्रेरणा ले कर अपना मैंने “कुछ दिन तो गुजारो इस फ्रेम में” चलाया जिसके तहत में बहुत सारे रोल में रहा और अभी भी ज़िन्दगी में रोल बदल ही रहा हूँ |
10 ईयर चैलेन्ज ज़िन्दगी के बड़े चैलेन्ज में से है, क्यूंकि हमारी पीढ़ी ने दुनिया को बहुत तेज़ी से बदलते देखा , मुहल्ले में एक टीवी की “रामायण” से लेकर घर के हर कमरे तक में “बिग बॉस” के हम गवाह है , बदलती दुनिया के साथ उतनी तेज़ी से बदलना सच में बड़ा काम है |
काम करते रहते चैलेन्ज लेते रहिये देखते हैं फेसबुक लम्बा चला तो आगे 20 ईयर चैलेन्ज भी देगा ...
  


Share: