निचले तबके के लोग...


ना रहने का ठिकाना... भाग्य है सूना विराना...
ना खाने को अन्न...ना खरीदने को धन..
क्योंकि वे हैं सिर्फ निचले तबके के लोग...

ना सोचने को दिमाग..
ना दिनभर मांगी भीख का हिसाब
ना पहनने को लिबाज..
ना अपने से कोई इच्छा ना खुद से कोई आस..
हो भी क्योँ ?
क्योंकि वे हैं सिर्फ निचले तबके के लोग...

हर रात ना है कोई उजाले का सहारा...
उन झुग्गी झोपडियौं में ना है किसी प्रकाश का इशारा...
दिन भर की भीख को शराब में डुबो दिया...
बीवी बच्चो को खुद कमाने छोड़ दिया....
मुझे कुछ भी सहानुभुति नहीं...
क्योंकि वे हैं सिर्फ और सिर्फ निचले तबके के लोग...
और जिंदगी भर रहेंगे सिर्फ और सिर्फ निचले तबके के लोग...
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2 comments:

  1. sochne ko dimag wali pankti thoda vichlit karti hai fhawnao ke is udgar ko ....nichle tabke ke logon se ap kya wyakt karna chahte ho ismain thodi aur spastta ki awsyakta jaan padti hai .

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