तेरा तुझ को अर्पण



कतरा कतरा तुझ पे न्योछावर हो जाये मेरे खून का तब भी कोई गम नहीं

मेरे हर एक सांस तुझे फिर बचाने में लग जाये तब भी कोई गिला नहीं

जीवन दान कर दूँ तेरे लिए ये भी कोई बड़ा बलिदान न होगा

क्योंकि हर रोज प्रार्थना करते ये ही तो बोलते हैं हम...

तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा

ॐ जय जगदीश हरे.....

फिर अपनी बातों से पीछे क्यूँ हटना???






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ख्वाइश....





चाहत थी तुझ से कल मिलने की...
सोचा था भूल चूक की माफ़ी मांग लूँगा...
चाहत थी आखिरी बार तुम्हे देखने की...
सोचा कम से कम चेहरा तो दिल में उतार लूँगा
चाहत थी कुछ लफ्ज बदल लें आखिर में...
सोचा कम से कम जिंदगी तो गुजर ही लूँगा
पर मैने खुद सोचा आखिर में मिलने से पहले ये
गढ़े मुर्दे उखाड़ा नहीं करते...
समय के पन्ने दुबारा पलटा नहीं करते...
बस इतनी दुआ रब से मांग कर...
की सलामत और खुश रहे तू सदा ....
अपनी ये ख्वाइश अधूरी ही छोड़ दी.....


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दिल





दिल है मेरे पास जो .....
दर्द उस में भी होता है.....
धड़कता है वो भी दिन रात तुम्हारे लिए...
अकेलेपन से उस का भी सामना होता है...
चाहे भीड़ में खुशियौं से लबरेज दिखता हो ये सब को
पर अकेले में खून के आंसूं ये भी रोता है
मुझे मालूम नहीं सोच क्या है तुम्हारी??
पर याद रखना सच्चा प्यार खुदा होता है....
कब होगी तुम्हे कद्र मेरे मुझे अंदाजा भी नहीं...
पर याद रखना सिर्फ इस बात को...
कोई एक दिल है इस दुनिया में....
जो तुम्हारे लिए हर पल जागे और कभी सपने में भी नहीं सोता है.....
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अलग है






सब के सपने अलग हैं,

सब के अरमान अलग हैं...

सब की जमीं अलग हैं,

सब के आसमान अलग हैं...
सब का नजरिया अलग है,
और सब की अपनी अपनी पहचान अलग है....
तो क्यूँ कैद करते हो किसी के हुनर को?

क्यूँ कतरते हो किसी के पंखो को??
सब के पंख अलग हैं....

पंखो कि उड़ान अलग है...

उड़ने दो उन्हें खुद कि सोच से,

सब के पंखो कि उड़ान अलग है......

उन पंखो से उसकी पहचान अलग है.....

अलग अलग सोच के आसमान अलग है....


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