कोरोना के दौर में विश्वास और अ विश्वास

ज़िन्दगी में कुछ भी कहानी जैसा नहीं होता या तो वो हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा होता है या हमें सुनाया गया किसी और का किस्सा होता है और ये किस्सा भी कुछ ऐसा ही है ये कहानी दो लाइन्स पर आगे बढती है जिसमें एक लाइन मरीज का परिवार वाला बार बार कहता है कि “आप मेरे लिए भगवान् स्वरुप हो और ये जीवन जो है वो आप का ही दिया हुआ है” और दूसरी लाइन डॉ. सोचता है कि “ अगर ये बार बार भगवान् बोल रहा है तो भगवान् के साथ धोखा थोडा न करेगा” |


ये बात तक़रीबन 1 साल पहले की हैशहर में डेंगू फैला हुआ था | शहर में सारे अस्पताल खचाखच भरे हुए थेऐसे में एक आदमी अपनी बूढी माँ को लेकर अस्पताल आता है और रिक्वेस्ट करता है कि उसकी माँ को देख लीजिये | डॉ. उसकी माँ को देखते हैं और कंडीशन को देखते हुए आई.सी.यू. में एडमिट कर देते हैं | डॉ. अगले 4-5 दिन में उसकी माँ को ठीक करके घर भेज देते हैं और क्यूँकी माँ की उम्र ज्यादा थी औरऔर भी कई बीमारियाँ थी जिसके लिए उस आदमी को डॉ. को दिखाने आना पड़ता था | जब भी वह डॉ. को दिखाने आता तो कृतज्ञ हो कर एक ही बात कहता कि “आप मेरे लिए भगवान् स्वरुप हो और ये जीवन जो है वो आप का ही दिया हुआ है” | डॉ. को भी अच्छा लगता और वो उस आदमी को प्रोफेशनल तरीके से न डील करते हुए पर्सनल तरीके से देखतेउसके कॉल्स अपने पर्सनल टाइम में भी उठाते और सलाह देते | कुछ समय बाद उसकी माँ सही हो गयी
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उस आदमी के कुछ 3 भाई थे जिसमें से एक भाई शराबी था | वो आदमी अपने शराबी भाई को दिखाने डॉ. के पास आया जिस पर डॉ. ने बताया कि मरीज ने शराब पी पी कर अपने लीवर को ख़राब कर लिया है | डॉ. ने ट्रीटमेंट लिखा और आगे गेस्ट्रोएंट्रियोलोजिस्ट को दिखाने को कहा | उस ने शहर में गेस्ट्रोएंट्रियोलोजिस्ट खोजा पर जब कोई नहीं मिला तो उसने अपने भाई को घर में ही रखा और डॉ. का बताया हुआ ट्रीटमेंट जारी रखा | कोरोना का दौर चल रहा थाउसी दौरान एक रात डेढ़ बजे उस आदमी ने डॉ. को कॉल किया कि मेरे भाई की तबियत बहुत ख़राब है और कोई भी अस्पताल एडमिट नहीं कर रहा | डॉ. खुद कोरोना ड्यूटी पर थे पर फिर भी उन्होंने अस्पताल बुला लिया | क्यूँकी साथी डॉक्टर भी साथ में थे तो उन्होंने सलाह दी कि आप को कोई आर्थिक फायदा तो है नहीं आप मामले को रफा दफा कीजियेतो डॉक्टर ने जवाब दिया कि “जिम्मेदारी तो लेनी ही पड़ेगी मैंने ये प्रोफेशन जिम्मेदारी से भागने के लिए तो नहीं उठाया “ और डॉ. मरीज देखने चले गये | जब उन्होंने मरीज को देखा तो सलाह दी कि यह बीमारी यहाँ ठीक नहीं हो सकती आप को दिल्ली जाना पड़ेगा | वो आदमी अपने भाई को लेकर लीवर के सबसे बड़े इंस्टिट्यूट आई.एल.बी.एस. दिल्ली चला गया | वहाँ मरीज तक़रीबन 1 महीने भर्ती रहा उसकी कंडीशन वहाँ और ख़राब होती गयी | दिल्ली में एक महीने के इलाज़ के दौरान उस आदमी का तक़रीबन 20 लाख का खर्चा हो गया | इस एक महीने के दौरान वह आदमी लगातार डॉ. के संपर्क में रहा और क्यूँकी डॉ. भी यह समझ पा रहे कि अकेला है तो वह न केवल उसका ढाढस बंधा रहे थे बल्कि मेडिकल सलाह भी दे रहे थे |   

 
तक़रीबन एक महीने मरीज़ वेंटिलेटर पर रहा और उस की हालत बद से बत्तर होती जा रही थी और कोरोना की वजह से कोई भी अस्पताल अपने यहाँ इस केस को लेने के लिए तैयार नहीं था ऐसे में उस आदमी ने डॉ. को रोते हुए कॉल किया उसने अपने भाई कंडीशन के बारे में बताया और बोला कि पैसा भी पानी की तरह जा रहा हैभाई के भी ठीक होने के कोई आसार नहीं हैं और शायद बच भी नहीं पायेगाहालत बहुत ख़राब है मैं अन्दर तक टूट चूका हूँ  आप ही बताइए मैं क्या करूँ ? मैं अपने भाई को वापस अपने शहर लाना चाहता हूँ |  ये वक़्त बहुत कठिन था क्यूँकी कोरोना के चलते कोई भी अस्पताल भर्ती करने के लिए राजी नहीं था और कोरोना के आंकडें अब कोरोना से मौत के आंकड़ों में बदलने लगे थे |  डॉ. ने वक़्त और व्यक्ति की नजाकत समझते हुए कहा कि आप ले आइये हम से जो भी बेस्ट बन पड़ेगा हम करेंगे | वह आदमी थोडा शांत हुआ और वह अपने भाई को लेकर अपने शहर आ गया और अस्पताल में भर्ती कर दिया | डॉ. ने मरीज़ को आई.सी.यू. शिफ्ट किया और दिन रात एक करके अगले 10-11 दिनों में मरीज को वेंटिलेटर से बाहर शिफ्ट कर दिया और 17-18 दिन बाद मरीज़ की छुट्टी कर दी | इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि उस आदमी से डॉ. तथा अस्पताल ने कोई भी पैसों की बात नहीं की | क्यूँकी डॉ. इस भरोसे में थे कि पैसे तो वह जमा कर ही देगा क्यूँकी एक तो उसकी माली हालत ठीक थी दूसरा वह लगातार डॉ. को एक ही बात बोले कि आप तो मेरे भगवान् हो इसलिए वह आदमी धोखा थोडा न करेगा क्यूँकी रिश्ता एक -दो दिन का तो था नहीं |
मरीज ठीक हो कर घर चला गया | उस आदमी ने डॉ. को कॉल कर के बताया कि सर मेरी फाइनेंसियल कंडीशन थोडा अभी ठीक नहीं है मैं अस्पताल का बिल अगले 10 -15 दिन में जमा करा दूँगा | अब 10-15 दिन बाद जब अस्पताल ने कॉल किया तो वो कभी आज तो कभी कल में टालने लगा और ऐसा करते करते 5 महीने बीत गये | अब एक दिन डॉ. ने खुद फ़ोन किया तो पता चला कि उनका नंबर तो ब्लॉक किया हुआ है और व्हाट्स एप पर भी कोई जवाब नहीं दे रहा | कुछ दिनों में अस्पताल का नंबर भी उस आदमी ने ब्लॉक कर दिया |

बस इतना सा ही है ये किस्सा जिसमें एक आदमी ने भगवान् बोल बोल के भगवान् को ही धोखा दे दिया |

सोशल मीडिया से लेकर अख़बारों के पन्ने पटे पड़े होते हैं ऐसे किस्सों से कि डॉ. ने ये किया , उस अस्पताल ने पैसों के लिए वो किया | पर इस किस्से पर क्या नजरिया है आप का जब डॉ. ने न केवल अपनी जिम्मेदारी को कोरोना जैसे कठिन समय में पूरा किया बल्कि उसे पर्सनल अटेंशन देते हुए मरीज़ को मरने से बचाया | बात लाख डेढ़ लाख की नहीं है बात उस बिश्वास की उस पतली डोर की है जिसमें उस आदमीं ने डॉ. को भगवान् बोला और उस डॉ. ने अपनी सीमाओं से बाहर जा कर मरीज़ को बचाया और फिर जब पैसों की बात आई तो वो आदमी भगवान् को चूना लगा कर चपत हो गया |


एक कहानी बचपन में पढ़ी थी “बाबा भारती और डाकू खड्ग सिंह” की जिसमें डाकू खड्ग सिंह ने अपाहिज के वेष में धोखे से बाबा भारती से घोड़ा छीन लिया था, जिसमें जाते जाते बाबा डाकू से कहते हैं कि कभी इस घटना का जिक्र किसी से मत करना वरना लोग दीन दुखियों पर विश्वास नहीं करेंगे | यह घटना भी कुछ ऐसी ही है जो अब ये सवाल मेरे लिए छोड़ गयी कि अगली बार कोई उसी भगवान् वाले विश्वास के साथ कोई किसी डॉ. के पास जाए तो डॉ. को क्या करना चाहिए
  



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10 ईयर चैलेन्ज और मैं


सोशल मीडिया बहुत मजेदार चीज है और जैसे हर चीज के फायदे नुकसान होते है वैसे ही ये प्लेटफॉर्म भी है | खैर भारत जैसे देश ने अभी एक मी टू मूवमेंट देखा उस से बहुत पहले अन्ना का इतना बड़ा आन्दोलन हो या दामिनी केस का जनाक्रोश उस में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा रोल रहा | अचानक कुछ दिनों से फेसबुक भरा पड़ा है 10 ईयर चैलेन्ज से , जिसमें अधिकतर लोग अपनी फोटो पोस्ट कर रहे हैं कि वो 2009 में ऐसे दिखते थे और 2019 में ऐसे दिखते थे |  
एक ही दिन में जब मैंने ज्यादा इस तरह की पोस्ट देख ली तो लगा कि मैं भी देखूं मैं कितना बदला हूँ | लैपटॉप के फोल्डर खोल के पुराना फोटो देखा तो लगा ज्यादा नहीं ही बदला हूँ तो फोटो पोस्ट करने का मन नहीं हुआ पर सोचने को मजबूर हुआ कि क्या बदला है पिछले दस सालों में ? मैं ? मेरी शक्ल ? मेरी अक्ल ? मेरे आसपास की चीजें ?
पिछले डेढ़ महीने से घर में ही हूँ , एक दिन एक बच्चा हमारे घर आया मैंने जब अपनी पडोसी दीदी को पूछा कौन है ये ? तो दीदी ने एक नाम लेकर कहा कि ये उस का लड़का है , मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि इसकी माँ भी इस मुहल्ले तक़रीबन इतनी ही आई थी हाँ चाहे भले ही वो 10 ईयर चेलेंज से थोडा ज्यादा बड़ी बात हो पर फिर भी लगा कि वक़्त बदलने में वक़्त कम लगता है |
ज़िन्दगी की किस्सागोई में एक किस्सा याद आता है कि
मैंने कहा - कहाँ हो ?
वो बोली - बस में....
मैंने फिर धीरे से कहा - किसके ???
और शोरगुल के बीच ख़ामोशी छा गयी | पिछले दस सालों में न जाने कितनी खामोशियाँ छा गयी , पर मुझे लगता है ये खामोशियाँ वक़्त के साथ कभी कभी आईने के सामने खड़े होने पर हम से रूबरू होती है | मैं कई ऐसे घरों को जानता हूँ जहाँ बैठ कर मैंने चाय पी है पर पिछले दस सालों में वो घर कहानियों का हिस्सा बन गये और अब कोई वास्ता नहीं है |
2009 में मैं फार्मेसी कर रहा था (जो मैंने पूरी नहीं की और फाइनल ईयर में छोड़ दी खैर...) मैं तब सोचता था कि यार चार साल की फार्मेसी कर लूँगा फिर दो साल का एम् फार्मा. उस के बाद दो साल की नौकरी करूँगा और फिर शादी कर लूँगा और हो गयी ज़िन्दगी सेट | ये कहानी मैं कई बार सुनाता भी हूँ मुझे हँसी भी आती है कि 2009 में सोची गयी कहानी के हिसाब से 2016 में शादी हो गयी होती और यहाँ तक कि लाइफ सेट हुए भी 3 साल हो चुके होते पर शायद ज़िन्दगी का ये 10 ईयर चैलेन्ज कोई और कहानी चाहता है | अगर 10 ईयर चेलेंज में देखूं तो केवल घर वाले बचे हैं और मेरे चार दोस्त बाकी सब कुछ बदल गया |
10 ईयर चैलेन्ज को गौर से देखता हूँ तो अच्छा ही लगता है शायद ये मौका है पीछे पलट के देखने का पर अफ़सोस हम सिर्फ पलट के देख ही सकते हैं चीजों को ठीक करने की गुंजाइश तो कब की ख़त्म हो चुकी है |
पिछले 10 सालों में कई फ्रेम बदले और अमिताभ बच्चन के ऐड की तरह “कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में” से प्रेरणा ले कर अपना मैंने “कुछ दिन तो गुजारो इस फ्रेम में” चलाया जिसके तहत में बहुत सारे रोल में रहा और अभी भी ज़िन्दगी में रोल बदल ही रहा हूँ |
10 ईयर चैलेन्ज ज़िन्दगी के बड़े चैलेन्ज में से है, क्यूंकि हमारी पीढ़ी ने दुनिया को बहुत तेज़ी से बदलते देखा , मुहल्ले में एक टीवी की “रामायण” से लेकर घर के हर कमरे तक में “बिग बॉस” के हम गवाह है , बदलती दुनिया के साथ उतनी तेज़ी से बदलना सच में बड़ा काम है |
काम करते रहते चैलेन्ज लेते रहिये देखते हैं फेसबुक लम्बा चला तो आगे 20 ईयर चैलेन्ज भी देगा ...
  


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सपनों और आसमानों का तत्काल और नार्मल पासपोर्ट

हम दोनों ही उड़ना चाहते थे अपने अपने आसमानों में ...इसी लिए शायद दो साल पहले महसूस हुआ कि हम दोनों की उड़ान और आसमान अलग है जिसे साथ रह कर नहीं पाया जा सकता ...उसे जल्दी थी और मैं सही वक़्त के लिए खुद को तैयार कर रहा था | अपने अपने आसमानों की ख्वाइश लिए हम दोनों ने ही एक दूसरे को अलविदा कह दिया था |
भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में महसूस हुआ कि दोस्त लोग विदेश जा रहे हैं कुछ नौकरी करने ,कुछ घूमने और कुछ अपने हनीमून पर ...अपनी ज़िन्दगी पर हल्का सा मुस्कुरा कर सोचा विदेश का तो अभी पता नहीं चलो पासपोर्ट तो बना ही दें ... अलमारी में पड़ा रहेगा पर एक अलग रौब तो होगा |
ऑनलाइन अप्लाई किया और अपने हिसाब का एक दिन खोज के अपॉइंटमेंट ले लिया | पासपोर्ट ऑफिस सिर्फ मोबाइल पर आये मैसेज के साथ पहुँच गया तो टोकन काउंटर पर बैठी लड़की ने फोटोस्टेट वाले काउंटर को दिखाते हुए कहा कि वहाँ से एस.एम्.एस. फॉर्म लेकर उसे भर दीजिये और फिर इस काउंटर पर अपने डॉक्यूमेंट चेक करवा दीजिये | मैंने वो एस.एम्.एस. फॉर्म 2 की जगह 5 रूपये में ख़रीदा क्यूंकि शायद उस के पास छुट्टे नहीं थे या ये भी पॉसिबल है कि वो पैसे ही न लौटाना चाहती हो खैर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बाकी के 3 रूपये उसे ही रखने को कह कर फॉर्म ले लिया |

वो फॉर्म लेकर मैं लिखने को बने प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ा और अपने जेब से कुछ देर पहले ही ख़रीदे 5 रूपये के नीले पेन से भरने लगा | मैं फॉर्म भर ही रहा था कि अचानक गेट से जाने पहचाने चेहरे ने एंट्री ली | मैं थोडा झटके में था कि इत्तेफाक से ही क्यूँ मिलना होता है ? शायद क्या उस ने भी मुझे देख लिया था जिसकी उस को ज्यादा ख़ुशी नहीं ही थी | हम दोनों एक दूसरे से अनजान ही बने रहे |
डॉक्यूमेंट चेक कराने की लाइन में उस के और मेरे बीच 1 आदमीं का फर्क था | तभी नए काउंटर पर एक लड़की बैठी और उस ने कहा कि आधे लोग यहाँ चेक करवा लो तो मेरे सामने वाले ने उस नई लाइन में पहला नंबर लगा दिया और दूसरा मेरा नंबर था | हम दोनों अब अगल बगल खड़े थे चाहे हम दोनों के बीच 20 सेंटी मीटर का भी फासला न था पर दूरियां कई गलतफहमियों और अपने अपने नज़रिये की थी | अगल बगल खड़े हो कर भी अनजानापन बना रहा |
मेरे डॉक्यूमेंट पहले चेक हो चुके थे उस में शायद कुछ मसला आ रहा था तो उसे वक़्त लगा | मैं अब दूसरे कमरे में आ चुका था और फोटो खिंचने का इंतजार करने लगा जिसके लिए मुझे बमुश्किल 5 मिनट का इंतजार करना पड़ा मैं अपना दूसरा स्टेप पूरा करके तीसरे स्टेप की तरफ बड़ा जिसे पूरा होने में भी 5 मिनट लगे | मैं अपने अगले और आखिरी स्टेप के इंतजार के लिए एक ऐसी जगह खड़ा हुआ जहाँ से मैं उसकी फोटो खिंचते देख रहा था और लाखों बेफजूली सवालों को अपने दिमाग मैं पैदा और दफ़न कर रहा था |
उस का भी दूसरा और तीसरा स्टेप जल्दी हो गया यहाँ मुझे उस के और अपने कोड नंबर में फर्क नज़र आया और समझ आया कि उसे इस बार भी जल्दी थी वो तत्काल में पासपोर्ट बना रही थी और मैं इस बार भी सिर्फ खुद को तैयार कर रहा था | तत्काल वालों को पहले तवज्जो मिलता है , पहला क्यूंकि शायद उनका वक़्त ज्यादा कीमती है दूसरा शायद उन्होंने कीमत ज्यादा चुकाई है | आधे घंटे बाद ही उस का फाइनल स्टेप का नंबर आ गया उस ने अपने डॉक्यूमेंट चेक करवाए और आगे बढ़ गयी एग्जिट गेट की तरफ , मैं ये सब करते हुए देख रहा था |
मेरा नंबर उस के जाने के पूरे दो घंटे बाद आया क्यूंकि शायद सोचने वालों को सरकारी लोग भी वक़्त खूब देते हैं , भाई सोच ले तू सही तो कर रहा है न | उस के बारे में सोच रहा था मैं, उस इंतजार के वक़्त में कि एक वक़्त था जब हम दोनों के बीच के सारे रस्ते एक दूसरे से जुड़े थे और एक आज का वक़्त है जब हम दोनों के बीच एक शब्द भी बदले नहीं गये |
इन सब बातों में जो बिल्कुल भी नहीं बदला था वो ये कि उसे इस बार भी पूरी जल्दी थी और मैं इस बार भी वक़्त लेकर सोच रहा था और यही बात हम दोनों के सपनों,आसमानों और रास्तों को अलग अलग कर चुकी थी |

       
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मेरे पिता और उनकी किच किच


मेरे पिता किच किच करते थे  ,
मेरे पिता किच किच करते थे ,जब मैं पढता नहीं था  |
जब मैं खाना सही से नहीं खाता था |
जब मैं क्लास में पीछे बैठता था |
जब वो मेरा झूट पकड़ते थे |
जब मैं स्कूल नहीं जाना चाहता था |
जब मैं एक्स्ट्रा पॉकेट मनी मांगता था |
जब मैं डॉ. नहीं बनना चाहता था |
जब मैं उन्हें अपने सपने सुनाता था
एक दिन मैंने अपने पापा से किच किच की उनकी किच किच पर
उन्हें समझाया कि मेरी किच किच के मायने क्या हैं ?
उन्हें दिखाया कि उनकी किच किच मेरी किच किच से कैसे अलग है ?
उन्हें बताया कि जायज़ है उनकी किच किच भी ,
पर हर बार दोनों की किच किच एक हो जरुरी तो नहीं |
वक़्त लगा उन्हें किच किचो के इस दौर में मेरी किच किच को समझने में |
और आज 
मेरे पिता अब भी किच किच करते हैं
जब मैं अपने सपनों से भटकने लगता हूँ |
जब मैं रुक जाता हूँ ठोकर खा कर |
जब मैं सफलता के मद में चूर हो जाता हूँ |
जब मैं खुद से किये वादों तो तोड़ने लगता हूँ
जब मैं दायरों में बांधने लगता हूँ खुद को |
जब मैं थकने लगता हूँ  |
एक दिन मैंने अपने पापा से किच किच की उनकी किच किच पर   
पर इस बार मेरे पापा ने मुझे समझाया कि इस किच किच के मायने क्या हैं ?
उन्होंने दिखाया कि इस किच किच पर उनका नजरिया क्या है ?
इस बार मुझे बताया कि ये किच किच कैसे मुझे ज़िन्दगी की बड़ी लडाइयों के लिए तैयार करेगी ?
और इस बार थोडा मैंने ज्यादा किच किच किया और वक़्त लगाया उनकी किच किच को समझने में
और आज मैं समझता हूँ कि क्यूँ जरुरी है ये किच किच
और मैं चाहता हूँ मेरे पिता ताउम्र यूँ ही किच किच करते रहें 
क्यूंकि उनकी किच किच जरुरी है ताकि मेरी ज़िन्दगी में किच किच न हो |  



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ईद और नया परिवार

मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं कि कोई बार बार पैकेजिंग यूनिट को रोक के आधे आधे घंटे का आराम फरमाए | मैं पिछले एक 15 दिन से तुम लोगों का ये ड्रामा देख रही हूँ , नयी हूँ इस कंपनी में इस का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि कुछ नहीं कहूँगी .... नमिता पैकेजिंग यूनिट के सुपरवाइजर पे एक तरफ़ा चिल्लाते हुए बोली और बिना कुछ सुने दरवाज़े को पीटते हुए अपने केबिन में चली गयी |
उस के इस गुस्से को देख कर सुपरवाइजर ने सब को काम पर वापस लगा दिया और दवाइयों के पैकेट कॉटन बॉक्स में भर के स्टोर रूम को जाने लगे |
आरव अपने केबिन में बैठे ये सब देख रहा था , उस ने इण्टरकॉम से कॉल करके नमिता को केबिन में बुलाया |
May I come in sir  ? नमिता ने पूछा
Yes , please come in . आरव ने कहा
तो नमिता कैसा चल रहा है सब ? कैसा लग रहा है यहाँ ? आरव ने बैठने का इशारा करते हुए कहा |
अच्छा चल रहा है सर , सीख रही हूँ बहुत कुछ ... नमिता ने जवाब देते हुए कहा
कोई बात लगी यहाँ ? आरव ने फिर सवाल किया
नहीं सर कोई ख़ास नहीं काफी अच्छी टीम है | नमिता ने कम शब्दों में ही जवाब दिया
क्या सच में तुम्हें कुछ अलग नहीं लगता ? आरव ने सवालों के कटघरे में नमिता को घेरते हुए कहा
सर लगता तो है पर मुझे नहीं पता कि इसे कहना कैसे है ? नमिता ने डरते डरते कहा 

अरे खुल के बताओ ... आरव ने उस के डर पहचानते हुए कहा

सर मुझे दिक्कत होती है अपनी टीम के साथ वो काम कम और आराम ज्यादा करती है ? नमिता ने एक साँस में कहा
पर पिछले तीन सालों से पैकेजिंग डिपार्टमेंट ही बेस्ट टीम का अवार्ड ले जा रहा है और उनकी वजह से कंपनी का मुनाफा भी बढ़ा है | आरव ने आराम से कहा
पर सर ... नमिता ने थोडा परेशान हो कर कहा 

एक काम करो नमिता तुम तो नाईपर मोहाली की पास आउट हो न पता लगाओ कि क्या है ऐसा पैकेजिंग डिपार्टमेंट में जो वो पिछले इतने सालों से बेस्ट है ? आरव ने टास्क देते हुए कहा

ठीक है सर मैं एक हफ्ते बाद आप को जवाब दूंगी | नमिता ने सीट से उठते हुए कहा
नमिता इस सवाल से बहुत परेशान हो गयी , वो बार बार कोशिश करती पुरानी फाइलों को उलटते पुलटते हुए इस सवाल का जवाब खोजते हुए | 

इस पूरे हफ्ते नमिता अच्छे से सो नहीं पाई और 3 शिकायतें भी डाल चुकी थी अपनी टीम के खिलाफ बीच में काम रोकने की बात पर , पर फॉलोअप इस लिए नहीं लिया क्यूंकि बॉस यानि आरव का दिया हुआ टास्क पूरा नहीं हुआ था |

हफ्ता बीत जाने के बाद भी नमिता नहीं जान पाई थी कि पैकेजिंग डिपार्टमेंट बेस्ट क्यूँ है ? बार बार काम रोकने की बात पर जब नमिता ने चौथी शिकायत डाली तो आरव ने उसे अपने केबिन में बुला लिया
सो नमिता मिला जवाब ? आरव ने मुस्कुराते हुए पूछा
सॉरी सर नहीं मिला पर मैं सारे डाटा को स्टडी कर रही हूँ जल्द ही मैं आप को अपनी रिपोर्ट दूंगी | नमिता ने सब कुछ एक साँस में कह दिया
पर सर एक सीरियस कंसर्न है पैकेजिंग यूनिट हर 2 घंटे में आधे घंटे के लिए बंद कर दी जाती है जिससे वक़्त का नुकसान होता है पूरी टीम काफी बाद तक भी रूकती है ,नमिता ने अपनी समस्या बताते हुए कहा |
पर जहाँ तक मुझे पता है पैकेजिंग यूनिट का एक भी टास्क पेंडिंग नहीं है और वो लोग ओवरटाइम भी नहीं ले रहे ? आरव ने सवाल करते हुए कहा
क्या तुमने कभी किसी से पूछा ? कि वो ऐसा क्यूँ करते हैं ? आरव ने सवाल पे सवाल दागा
सर सुपरवाइजर से क्या पूछना ? उसे तो आर्डर देना होता है और वो मेरा कहा मानता भी है  | नमिता ने बड़े कॉलेज के बड़े एटिट्युड को सामने रखते हुए कहा |
नमिता कभी तुम पैकेजिंग टीम के रहीम चाचा से मिली हो ? आरब ने पूछा
आरव के मुहँ से किसी के नाम के आगे चाचा सुन कर उसे अजीब लगा क्यूंकि कॉलेज की बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में तो उसे किसी भी स्टाफ को सर मैम के अलावा तो कुछ भी नहीं सिखाया था |
नहीं सर नहीं मिली नमिता ने घबरा कर कहा |
नमिता हमारी कंपनी का सक्सेस का फंडा तुम्हें पता है किस ने ईजाद किया है ? रहीम चाचा ने .. अराव ने एक ही लाइन में सवाल और जवाब दोनों को रखते हुए कहा |
वो कैसे सर ? नमिता को कॉलेज की पढाई नया समझने को मिल रहा था कुछ |
9 साल पहले मैंने जब कंपनी शुरू किया था तो मेरे पास कुछ एक बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनीयों का अनुभव था एक विदेशी यूनिवर्सिटी से एम्.बी.ए की डिग्री थी पर फिर भी मैं  मुनाफा नहीं कमा पा रहा था  | एक दिन मैं अपने ऑफिस में यूँ ही परेशान बैठा था तो रहीम चाचा ने मुझे पानी का ग्लास देते हुए कहा कि सर छोटे मुहँ बड़ी बात पर मैं आप को समस्या को सुलझा सकता हूँ | उन्होंने मुझे कंपनी को एक परिवार की तरह चलाने को कहा हर एक टीम की दिक्कतों को खुद सुनने को कहा | ये बातें मुझे किसी एम्.बी.ए प्रोग्राम ने नहीं सिखाई थी  और एक ख़ास बात उन्होंने मुझ से कही
क्या सर ? नमिता ने पूछा
उन्होंने मुझे कहा सर हमारी कंपनी में पैकेजिंग टीम में कई मुस्लिम परिवारों से हैं रमजान के पाक महीने में वो रोज़े रखते हैं , पैकेजिंग में स्पीड से काम होता है जिससे वो थक जाते हैं अगर हम हर २ घंटे में आधे घंटे का ब्रेक दें और थोडा सा ऑफिस टाइम बढ़ा देंगे तो काम भी नहीं रुकेगा और टीम भी नहीं थकेगी | क्यूंकि साल में २ महीने छुट्टी तो नहीं कर सकते न ?
मैं उस वक़्त सारी कैलकुलेशन लगा कर इस बकवास आईडिया को सुन कर कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो ?
सर ऐसा जरुर होगा और अगर नहीं हुआ तो आपकी हर सजा मुझे मंज़ूर होगी | रहीम चाचा ने जवाब में कहा
नमिता एक वो वक़्त था और एक आज कंपनी कभी घाटे में नहीं गयी , कंपनी चलाने के तो सारे प्रोग्राम है पर परिवार चलाना कोई नहीं सिखाता उस के लिए रहीम चाचा जैसे लोग ही ज़िन्दगी के किसी मोड़ में मिलते हैं |
तभी केबिन के दरवाज़े पर दस्तक हुई , दरवाज़े पर रहीम चाचा थे | नमिता अपनी सीट से उठी
अरे मैडम बैठिये बैठिये वो कल ईद है न तो कई लोग कल सुबह के वक़्त नहीं आ पाएंगे तो आधे दिन की छुट्टी मिल जाती तो ? टीम ने नमिता के गुस्से को देखकर रहीम को आगे करते हुए भेजा था |
नमिता केबिन से बाहर आई और पैकेजिंग यूनिट की तरफ बढ़ी  , आरव और रहीम भी पीछे पीछे हो लिए | नमिता को देख सभी खड़े हो गये
ईद मुबारक सभी को और कल की छुट्टी है और हाँ परसों मेरे लिए सिवाई लाना मत भूलना
सभी में ख़ुशी की लहर दौड पड़ी |
ये ईद नमिता के लिए सीख का नया तौहफा लायी थी जिसमें उस का परिवार अब बढ़ गया था और उस में कई लोग उस की कंपनी के शामिल हो चुके थे और वो पैकेजिंग यूनिट की हेड से इस परिवार का हिस्सा बन चुकी थी | 
  

   





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नजरिया चाय और लोगों को परखने का


वो- सॉरी मैं थोडा लेट हो गयी .. तुम्हे ज्यादा देर तो नहीं हुई ...
मैं – अरे कोई नहीं ..मुझे पसंद है इंतज़ार करना ..या यूँ कहो कि इस इंतजार के वक़्त में मुझे कुछ खाली वक़्त मिल जाता है खुद से रूबरू होने का ...
वो – ओ हो... बड़ा ही डीप थॉट था... थोडा ऊपर से गुज़र गया ..पर कोई नी दुनिया भर की सारी बातें हमें ही समझ आयें जरुरी तो नहीं...
मैं – मैंने चौका मारा तो तुमने तो सीधे छक्का जड़ दिया ..खतरनाक प्रैक्टिकल थॉट दिया तुमने ... मैं इतना प्रैक्टिकली नहीं सोच पाता .. 
वो – पहले मैं भी नहीं सोचती थी फिर ऐसे ही... खैर क्या लोगे तुम ? 
मैं – यहाँ की चाय बड़ी बकवास है ...कुछ और ट्राय करते हैं... पिछले एक घंटे में 4 चाय पी चूका हूँ ...
वो – ओह सॉरी तुम पिछले एक घंटे से यहाँ हो... और अगर चाय इतनी ही बकवास थी तो 4 क्यूँ पी ?
मैं – 4 इसलिए पी क्यूंकि मैं पहली बार में ही कोई जजमेंट नहीं बना लेना चाहता था..मैं वक़्त देना चाहता था किसी भी बात को प्रूव होने में ...
वो – सिर्फ चाय के साथ ऐसा किया या सब जगह ये ही करते हो ? 
मैं – हा हा हा .. डिपेंड करता है ...
वो- चीज़ सैंडविच आर्डर करते हैं ..स्पेशल है यहाँ का ..
मैं – तुम अक्सर आती हो यहाँ ?
वो – हाँ अक्सर ... 
मैं - क्या मैं पहला हूँ जिसे तुम देखने आई हो ?
वो – तुम्हें क्या लगता है ?
मैं – अरे मेरे लगने से क्या होता है ? बताओ न 
वो – हा हा हा ... तुम्हारे सवाल का जवाब ये है या नहीं पर तुम तुम्हारे तरह के पहले हो ...
मैं – और मैं किस तरह का हूँ ?
वो – तुम्हें पढ़ा है मैंने और लिखावट में तो तुम बाकियों जैसे नहीं हो ..पता नहीं असल ज़िन्दगी में तुम कैसे हो ... मैंने अक्सर अपने आसपास बहरूपियों को पाया है 
मैं – एक सवाल करूँ ? थोडा पर्सनल है ..बुरा तो नहीं मानोगी ...
वो – पूछ लो.. सवालों से क्या डरना ...बी.जे.पी से थोडा न हूँ... हाँ अगर जवाब देने लायक नहीं हुआ तो नहीं दूंगी...
मैं – तुम्हारी रिंग फिंगर पे निशान है ...
वो – अरे वाह ऑब्जरवेशन बड़ा तगड़ा है तुम्हारा ... 
मैं – हर बदले हुए रंग की एक कहानी होती है और तुम्हारे हाथ में सिर्फ उस ऊँगली पर निशान था तो लगा पूछ लूँ..
वो – हाँ रिश्ता हुआ था मेरा ..उस की कहानियों पे मरती थी ..वो लड़का भी एक कहानी निकला ...कल्पना के कैनवास से ज्यादा कुछ नहीं ...बांसुरी सा खोखला.. तो सोचा क्यूँ नकली रिश्तों को ढोना.. रिंग उतार के फेंक दी नदी में 
मैं – रोई भी तुम ?
वो – तुम सवाल बहुत करते हो... बुद्ध से इंस्पायर हो क्या ?
मैं – मेरे सवाल का ये जवाब नहीं है 
 वो -हाँ थोड़ी देर बस ..किसी के लिए आंसू और वक़्त क्यूँ बर्बाद करना ..
मैं – फिर मुझ से मिलने क्यूँ आ गयी ? मैं भी तो लिखता हूँ 
वो – मैं एक बारी में ही कोई जजमेंट नहीं बना लेती ..वक़्त देती हूँ ...क्यूंकि हर कहानी एक जैसी नहीं होती ...
उस दिन उस मुलाकात में बहुत सी बातें हुई पर एक बात जो कॉमन थी वो था नज़रिया मेरा चाय को परखने का और उसका लोगों को...  



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हमारा प्यार और तवा फुल्का रोटी


आई लाइक योर स्किन कलर ... मैंने उस के कंधे पर एक किस करते हुए कहा

 ओहो... कितने रेसिस्ट हो तुम ... उस ने हल्की सी मेरे गाल में चपत लगा कर बोला ..


अरे इस में रेसिस्ज्म कहाँ से आ गया ? आई लव यू.. मोर देन ऐनी वन इन दिस वर्ल्ड .. बट फिर भी आई लाइक योर स्किन कलर... मैंने अपने गाल को सहलाते हुए जवाब दिया ...

हे भगवान क्या हो गया रवि तुम्हें ? तुम कबसे इंसान को रंगों में बाँटने लगे ? अब हमारे हाथ में थोडा न है कि कौन सा रंग ले कर हम पैदा होंगे ? उस ने सवाल पर सवाल दागे

हम्म ... मैंने उस के सारे सवालों को इग्नोर कर के उस के वार को खाली कर दिया...

तुम्हें वैलेंटाइन डे पे कौन सा गुलाब चाहिए ?

लाल गुलाब ....

हे भगवान् कितनी रेसिस्ट हो तुम .... लाल गुलाब ही क्यूँ ? काला, सफ़ेद या पीला गुलाब क्यूँ नहीं ? मैंने टांग खींचते हुए कहा ...
अरे यार मैंने उन्हें कहाँ इग्नोर किया बस उस दिन मुझे तुम लाल गुलाब दोगे तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा ... उसने हल्का नाराज़ हो कर कहा ...

बस तुम सही पकड़ी ... तुम्हारा रंग एक तवा फुल्का रोटी जैसा है और न केवल रंग तुम हो भी वैसे ही ....

वाह वाह... लोगों के पति उन्हें चाँद तारों और न जाने किस किस चीज से कम्पेयर करते हैं और तुम मुझे तवा रोटी बोल रहे हो ??
तवा रोटी नहीं तवा फुल्का रोटी.... मैंने उसे करेक्ट करते हुए कहा ...
हे भगवान् क्या कहूँ मैं....

अरे यार नाराज़ क्यूँ होती है कभी रोटी को देखा है ? वो आटे पानी को सही अंदाज़ और वक़्त तक गुथने और फिर उसे सही आकार में गोल करने और सही टाइम तक पकाने के बाद ही बनती है...

अच्छा जी ? तो बताओ कैसे हुई मैं तुम्हारी तवा फुल्का रोटी ? उस ने चाय का एक कप मुझे दे कर  और अपनी कॉफी के कप पर सवा 2 चम्मच चीनी डालते हुए पूछा .... ( रिया को चाय पसंद नहीं थी और अपनी कॉफी में फिक्स सवा 2 चम्मच चीनी से ही उसकी परफेक्ट कॉफी बनती थी )

यार तुम्हें भी पता है कि हम दोनों की शादी से काफी लोग खुश नहीं थे जिसमें हम दोनों के ही घर वाले थे , बहुत कुछ कहा भी तुम्हें उन्हें पर तुमने सब कुछ भुला कर सबको इतने कम वक़्त पर एक माला में पिरो दिया वही सबसे बड़ी बात है और तुमने सभी चीजें सही मात्रा में सही वक़्त पे की... थैंक्स यार.... मैंने चाय के दो तीन सिप लेते हुए अपनी  पूरी बात कह दी ...

रिया ने बड़ी शांति से बात को सुना और खामोश हो गयी... उस की ये ख़ामोशी मेरे अन्दर हलचल पैदा कर गयी ... मैंने उसे पूछा क्या हुआ ? सॉरी मेरी किसी बात का तुम्हें बुरा लग गया हो तो...
उस ने कॉफी ख़त्म कर के मेरे पास आ कर मेरे माथे को चूम कर कहा...


तुम्हें पता है रवि कोई भी अच्छा वाला ताला सिर्फ अपनी ही चाबी से खुलता है और ताले और चाबी के बीच की सही सामंजस्य ही ताले को हर किसी चाबी से खुलने से बचाता है हम दोनों के बीच भी यही बातें है सिर्फ मैंने ही सब कुछ नहीं सम्हाला तुमने भी मेरे घर वालों के लिए बहुत कुछ किया और हर बार सही वक़्त पे किया , तो सिर्फ मैंने ही तुम्हारी रोटी को पूरा नहीं किया बल्कि उस रोटी को बनने में तुमने भी पूरा साथ दिया ... हा हा हा और तुम्हारी भाषा में तुम भी मेरे तवा फुल्का रोटी हो ...              
और दोनों ही हम एक दूसरे को तवा फुल्का रोटी कह के रेसिस्ट हो गये...


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