हल्ला बोल



कब तलक कुवें के मेंढक, बन के दिन गुजारेंगे ...
कब तलक गिरती लाशों पर, आंसू हम बहायेंगे ?
कब तलक कहेंगे यूँ, कि देश ने क्या दिया है हमें ?
कब तलक कसाब जैसों को पाल कर साँप को दूध पिलायेंगे ?

कब तलक देंगे रिश्वत हम ?
कब तलक मंहगाई सह पाएंगे ?
कब तलक होंगे पैदा होंगे कलमाड़ी ?
कब नींदों से हम जाग पाएंगे ?

कब तलक सही लोकपाल बनेगा ?
कब तलक महिला होंगी चूल्हे चार दिवारी से बाहर ?
कब तलक छोड़ेंगे हम जात पात पर लड़ना ?
फिर कब तलक जगत गुरु बनेंगे हम ??

महसूस हुआ हो कुछ अगर तो ..
दिल और दिमाग कह रहा हो कुछ अगर तो ...
अगर लग रहा हो इंसान हैं हम ...
तो मिटा दे बुराइयों को ...आगे तो बढ़ ...
हम सब हैं न साथ तेरे ....
हल्ला तो बोल .... जरा जोर से तो बोल
हल्ला बोल....
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