कालका मेल ...



कालका मेल ...
मेरी जिंदगी में काल बन के आई .....
कालका मेल ...
सब कुछ छीन लिया मुझ से तूने....
किस जगह ला कर खड़ा कर दिया तूने मुझे ..
सब रास्ते ...सारी मंजिले बंद कर दी तूने मेरी ..
कितनी खुश थी में आज ....
मम्मी ... पापा ... भाई ..
सब नानी के घर जाने को चढ़े थे ...
छुट्टिया ख़त्म होने को थी ...
और हम दोनों को कॉलेज वापस जाना था ..
सोचा नानी के घर ही हो आऊं..
सब को साथ लिया और चल पड़ी ...
मौत के सफर में ...
जिंदगी की सारी खुशियों के आखिरी सफर में ...
चंद दूर ही पहुचे थे कि...
वो हुआ ...जिससे ...सब कुछ बिखर गया ....
ख़त्म हो गया मेरा परिवार ...
लाशे पड़ी थे सब की मेरे सामने ....
कितनी बदनसीब थी ...
सब कुछ ख़त्म एक झटके में .....
चारों तरफ चीत्कार मची थी ..
लाल रंग तो मानो यूं गिरा था जैसे होली खेली हो किसी ने ...
ना भाई बचा ... ना माँ ..ना पापा ..
मुझे क्यूँ छोड़ दिया भगवान् तूने ...
किस के सहारे जियूंगी में ? किस से लडूंगी अब में ??
कौन मुझे सम्हालेगी ??कौन मुझे डॉटेगी ??
अब कौन कहेगा मुझे बेटा पढ़ लो ??
सारी खुशिया ..सारे सपने ..
एक पल में चकनाचूर ...
चंद पल में अनाथ कर दिया तूने मुझे ..
क्या कुसूर था मेरा ???
किसे दोष दू ??
ट्रेन को? ड्राईवर को? भगवान् को? या अपनी किस्मत को ?
और मेरे जैसे उन बेकसूर लोगो का क्या .??
किसी ने मुझ जैसे माँ ..बाप ..भाई ..खोये ...
और किसी ने अपना पति ..बेटा ..अपना सगा ...
भगवान् वाकई बेरहम है तू ...
जिंदगी भर शिकायत रहेगी मुझे ...
मुझे भी लील लेता ..मुझे क्यूँ छोड़ा ????
क्यूँ छोड़ा मुझे अकेले ....यहाँ ...
और किस के भरोसे????
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