असीम ख़ामोशी....

जो साथ तेरा था, वो ही कारवां मेरा था...
जो सपने तेरे थे... वो ही लक्ष्य मेरा था...
जो दोस्त तेरे थे...वो ही साथी मेरे थे...
जो सांसे तेरी थी...वो धड़कने मेरी थी...
जो गम तेरे थे... वो आंसू मेरे थे..
जो हंसी तेरी थी...वो खुशियाँ मेरी थी...
जहाँ मिस कॉल तेरी थी...वहाँ १ घंटे की कॉल मेरी थी
वक़्त बदला
न कारवां ही रहा न साथ ही बचा..
न सपने ही रहे न लक्ष्य ही बचे...
न तेरी दोस्ती ही रही...न मै तेरा साथी ही रहा...
तेरी सांसों का अब मेरी धडकनों से कोई वास्ता न रहा
आंसू तो अब मेरे हैं...तुझे गम है मुझे इस का न पता
खुशियों से तो अब कोई वास्ता ही नहीं तो उस पे क्या कहूँ?
पर आज न मिस कॉल का इन्तजार है, न ही कॉल की बेकरारी
दोनों तरफ है तो सिर्फ एक असीम असीम और असीम ख़ामोशी....
                  
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1 comment:

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