ना वो मेरा रास्ता है ...
ना ही वो मेरी मंजिल है ....
फिर क्यूँ उन राहों में चले जा रहा हूँ ....
ना वो मेरा दोस्त है ...
ना ही वो मेरा सगा है ...
फिर क्यूँ उस को अपना कहे जा रहा हूँ ...
घिन आती है खुद पे ... और इस जिंदगी पे ...
इतना मतलबी बना गयी मुझे को ....
की अपनी माँ से भी उस के प्यार की वजह पूछ रहा हूँ ...
nice poem ...last line shandar hain
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