छिन चुका है बचपन यहाँ...
दादी नानी के कहानियाँ के किस्से तो अब किताबों में मिलते है....
कभी जगह थी गिल्ली डंडा की बचपन में...
अब तो सारे बच्चे कंप्यूटर के आगे मिलते हैं....
कभी होता थी गुड्डे गुड़ियों की शादी....
अब तो सिर्फ बार्बी डौल शोकेस में दिखती है...
वक़्त कहाँ है खेलने को अब...
सारे बच्चे ही तो किताबों में दबे मिलते हैं....
फूल तो मुरझा जाएँ बचपन में ही...
तो कहाँ वो खुशबू आगे देते हैं....
लौटा तो बच्चों को उन का बचपन....
क्यूंकि ये ही तो पूरा जग महका देते हैं....
दादी नानी के कहानियाँ के किस्से तो अब किताबों में मिलते है....
कभी जगह थी गिल्ली डंडा की बचपन में...
अब तो सारे बच्चे कंप्यूटर के आगे मिलते हैं....
कभी होता थी गुड्डे गुड़ियों की शादी....
अब तो सिर्फ बार्बी डौल शोकेस में दिखती है...
वक़्त कहाँ है खेलने को अब...
सारे बच्चे ही तो किताबों में दबे मिलते हैं....
फूल तो मुरझा जाएँ बचपन में ही...
तो कहाँ वो खुशबू आगे देते हैं....
लौटा तो बच्चों को उन का बचपन....
क्यूंकि ये ही तो पूरा जग महका देते हैं....
So sweet poem
ReplyDeleteदादी नानी के कहानियाँ के किस्से तो अब किताबों में मिलते है....
ReplyDeletecricut maker bundle black friday
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