मै तलाशता खुद को...




मै तलाशता खुद को ...
कभी सागर की गहराई में....
कभी पहाड़ो की ऊंचाई में...
कभी बादलों की काली घटाओ में...
कभी सावन में महकती लताओं में ...
मै तलाशता खुद को...
कभी ऑरकुट के अंधियारे में..
कभी फेसबुक के उजाले में...
कभी गूगल में खोजता खुद को ...
कभी याहू में खुद को तलाशता ....
कभी मंदिरों में भगवान् से पूछता...
कभी मस्जिद में खुद को खोजने की फ़रियाद करता...
हजारों मन्नतें मांगी गुरूद्वारे में...
और यीशु से भी खुद का पता पूछा...
मै तलाशता खुद को...
दिन के उजाले में बाजारों में खोजता
रात में शान्त सडको पे देखता....
हर गली हर मुहल्ले हर जगह देखता खुद को...
कंही तो मिलूं मै...
मै तलाशता खुद को...
हजारों कब्रे खोदी...
हजारों भूतों से तक मिला..
पर फिर भी न पा सका खुद को
मै अब भी तलाशता खुद को...
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