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ईद और नया परिवार

मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं कि कोई बार बार पैकेजिंग यूनिट को रोक के आधे आधे घंटे का आराम फरमाए | मैं पिछले एक 15 दिन से तुम लोगों का ये ड्रामा देख रही हूँ , नयी हूँ इस कंपनी में इस का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि कुछ नहीं कहूँगी .... नमिता पैकेजिंग यूनिट के सुपरवाइजर पे एक तरफ़ा चिल्लाते हुए बोली और बिना कुछ सुने दरवाज़े को पीटते हुए अपने केबिन में चली गयी |
उस के इस गुस्से को देख कर सुपरवाइजर ने सब को काम पर वापस लगा दिया और दवाइयों के पैकेट कॉटन बॉक्स में भर के स्टोर रूम को जाने लगे |
आरव अपने केबिन में बैठे ये सब देख रहा था , उस ने इण्टरकॉम से कॉल करके नमिता को केबिन में बुलाया |
May I come in sir  ? नमिता ने पूछा
Yes , please come in . आरव ने कहा
तो नमिता कैसा चल रहा है सब ? कैसा लग रहा है यहाँ ? आरव ने बैठने का इशारा करते हुए कहा |
अच्छा चल रहा है सर , सीख रही हूँ बहुत कुछ ... नमिता ने जवाब देते हुए कहा
कोई बात लगी यहाँ ? आरव ने फिर सवाल किया
नहीं सर कोई ख़ास नहीं काफी अच्छी टीम है | नमिता ने कम शब्दों में ही जवाब दिया
क्या सच में तुम्हें कुछ अलग नहीं लगता ? आरव ने सवालों के कटघरे में नमिता को घेरते हुए कहा
सर लगता तो है पर मुझे नहीं पता कि इसे कहना कैसे है ? नमिता ने डरते डरते कहा 

अरे खुल के बताओ ... आरव ने उस के डर पहचानते हुए कहा

सर मुझे दिक्कत होती है अपनी टीम के साथ वो काम कम और आराम ज्यादा करती है ? नमिता ने एक साँस में कहा
पर पिछले तीन सालों से पैकेजिंग डिपार्टमेंट ही बेस्ट टीम का अवार्ड ले जा रहा है और उनकी वजह से कंपनी का मुनाफा भी बढ़ा है | आरव ने आराम से कहा
पर सर ... नमिता ने थोडा परेशान हो कर कहा 

एक काम करो नमिता तुम तो नाईपर मोहाली की पास आउट हो न पता लगाओ कि क्या है ऐसा पैकेजिंग डिपार्टमेंट में जो वो पिछले इतने सालों से बेस्ट है ? आरव ने टास्क देते हुए कहा

ठीक है सर मैं एक हफ्ते बाद आप को जवाब दूंगी | नमिता ने सीट से उठते हुए कहा
नमिता इस सवाल से बहुत परेशान हो गयी , वो बार बार कोशिश करती पुरानी फाइलों को उलटते पुलटते हुए इस सवाल का जवाब खोजते हुए | 

इस पूरे हफ्ते नमिता अच्छे से सो नहीं पाई और 3 शिकायतें भी डाल चुकी थी अपनी टीम के खिलाफ बीच में काम रोकने की बात पर , पर फॉलोअप इस लिए नहीं लिया क्यूंकि बॉस यानि आरव का दिया हुआ टास्क पूरा नहीं हुआ था |

हफ्ता बीत जाने के बाद भी नमिता नहीं जान पाई थी कि पैकेजिंग डिपार्टमेंट बेस्ट क्यूँ है ? बार बार काम रोकने की बात पर जब नमिता ने चौथी शिकायत डाली तो आरव ने उसे अपने केबिन में बुला लिया
सो नमिता मिला जवाब ? आरव ने मुस्कुराते हुए पूछा
सॉरी सर नहीं मिला पर मैं सारे डाटा को स्टडी कर रही हूँ जल्द ही मैं आप को अपनी रिपोर्ट दूंगी | नमिता ने सब कुछ एक साँस में कह दिया
पर सर एक सीरियस कंसर्न है पैकेजिंग यूनिट हर 2 घंटे में आधे घंटे के लिए बंद कर दी जाती है जिससे वक़्त का नुकसान होता है पूरी टीम काफी बाद तक भी रूकती है ,नमिता ने अपनी समस्या बताते हुए कहा |
पर जहाँ तक मुझे पता है पैकेजिंग यूनिट का एक भी टास्क पेंडिंग नहीं है और वो लोग ओवरटाइम भी नहीं ले रहे ? आरव ने सवाल करते हुए कहा
क्या तुमने कभी किसी से पूछा ? कि वो ऐसा क्यूँ करते हैं ? आरव ने सवाल पे सवाल दागा
सर सुपरवाइजर से क्या पूछना ? उसे तो आर्डर देना होता है और वो मेरा कहा मानता भी है  | नमिता ने बड़े कॉलेज के बड़े एटिट्युड को सामने रखते हुए कहा |
नमिता कभी तुम पैकेजिंग टीम के रहीम चाचा से मिली हो ? आरब ने पूछा
आरव के मुहँ से किसी के नाम के आगे चाचा सुन कर उसे अजीब लगा क्यूंकि कॉलेज की बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में तो उसे किसी भी स्टाफ को सर मैम के अलावा तो कुछ भी नहीं सिखाया था |
नहीं सर नहीं मिली नमिता ने घबरा कर कहा |
नमिता हमारी कंपनी का सक्सेस का फंडा तुम्हें पता है किस ने ईजाद किया है ? रहीम चाचा ने .. अराव ने एक ही लाइन में सवाल और जवाब दोनों को रखते हुए कहा |
वो कैसे सर ? नमिता को कॉलेज की पढाई नया समझने को मिल रहा था कुछ |
9 साल पहले मैंने जब कंपनी शुरू किया था तो मेरे पास कुछ एक बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनीयों का अनुभव था एक विदेशी यूनिवर्सिटी से एम्.बी.ए की डिग्री थी पर फिर भी मैं  मुनाफा नहीं कमा पा रहा था  | एक दिन मैं अपने ऑफिस में यूँ ही परेशान बैठा था तो रहीम चाचा ने मुझे पानी का ग्लास देते हुए कहा कि सर छोटे मुहँ बड़ी बात पर मैं आप को समस्या को सुलझा सकता हूँ | उन्होंने मुझे कंपनी को एक परिवार की तरह चलाने को कहा हर एक टीम की दिक्कतों को खुद सुनने को कहा | ये बातें मुझे किसी एम्.बी.ए प्रोग्राम ने नहीं सिखाई थी  और एक ख़ास बात उन्होंने मुझ से कही
क्या सर ? नमिता ने पूछा
उन्होंने मुझे कहा सर हमारी कंपनी में पैकेजिंग टीम में कई मुस्लिम परिवारों से हैं रमजान के पाक महीने में वो रोज़े रखते हैं , पैकेजिंग में स्पीड से काम होता है जिससे वो थक जाते हैं अगर हम हर २ घंटे में आधे घंटे का ब्रेक दें और थोडा सा ऑफिस टाइम बढ़ा देंगे तो काम भी नहीं रुकेगा और टीम भी नहीं थकेगी | क्यूंकि साल में २ महीने छुट्टी तो नहीं कर सकते न ?
मैं उस वक़्त सारी कैलकुलेशन लगा कर इस बकवास आईडिया को सुन कर कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो ?
सर ऐसा जरुर होगा और अगर नहीं हुआ तो आपकी हर सजा मुझे मंज़ूर होगी | रहीम चाचा ने जवाब में कहा
नमिता एक वो वक़्त था और एक आज कंपनी कभी घाटे में नहीं गयी , कंपनी चलाने के तो सारे प्रोग्राम है पर परिवार चलाना कोई नहीं सिखाता उस के लिए रहीम चाचा जैसे लोग ही ज़िन्दगी के किसी मोड़ में मिलते हैं |
तभी केबिन के दरवाज़े पर दस्तक हुई , दरवाज़े पर रहीम चाचा थे | नमिता अपनी सीट से उठी
अरे मैडम बैठिये बैठिये वो कल ईद है न तो कई लोग कल सुबह के वक़्त नहीं आ पाएंगे तो आधे दिन की छुट्टी मिल जाती तो ? टीम ने नमिता के गुस्से को देखकर रहीम को आगे करते हुए भेजा था |
नमिता केबिन से बाहर आई और पैकेजिंग यूनिट की तरफ बढ़ी  , आरव और रहीम भी पीछे पीछे हो लिए | नमिता को देख सभी खड़े हो गये
ईद मुबारक सभी को और कल की छुट्टी है और हाँ परसों मेरे लिए सिवाई लाना मत भूलना
सभी में ख़ुशी की लहर दौड पड़ी |
ये ईद नमिता के लिए सीख का नया तौहफा लायी थी जिसमें उस का परिवार अब बढ़ गया था और उस में कई लोग उस की कंपनी के शामिल हो चुके थे और वो पैकेजिंग यूनिट की हेड से इस परिवार का हिस्सा बन चुकी थी | 
  

   





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भीड़ का हिस्सा बनके तुम अपनी मौत के लिए खुद जिम्मेदार होंगे !!!

पहले वो मेरे शहर में आये, लोगों को मारने लगे, 
मैंने कुछ नहीं किया ...

फिर वो मेरे मोहल्ले में आये,
मैंने कान बंद कर लिए...

फिर वो मेरी गली में आये,
मैंने आखे बंद कर ली...

जब वो मेरे घर में आये,
तो मुझे बचाने वाला कोई नहीं था !



द्वितीय विश्वयुद्ध की इस कविता से मैं तब रूबरू हुआ था जब अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन चल रहा था | इस कविता में कही बातें समाज का वो आईना है जिस पर पर्दा डाल कर हम उससे किनारा तो कर सकते हैं पर वो पर्दा कभी न कभी आईने से हटेगा और जब तक हम उस सच को समझें तब तक शायद बहुत देर हो जाए |

    गौरी लंकेश की हत्या एक अलार्म है | ये अलार्म पहले भी बजते आये हैं कभी राम रहीम केस को सामने लाने वाले रामचंद्र छत्रपति,कभी मलेशप्पा कलबुर्गी और कभी नरेंद्र दाभोलकर की हत्या से पर हम ध्यान नहीं देते क्यूंकि ये मुद्दे नहीं हैं |     
    
 इस बार अलार्म ज्यादा खतरनाक है | इस बात से नहीं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ख़त्म हो रही है बल्कि इस बात की कि हमारा समाज बड़ी तेजी से वैचारिक शून्य भीड़ में बदलता जा रहा है | हम क्यूँ अपने मुद्दों के लिए नहीं सवाल करते ? कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर गोवाहटी तक हम लाखों मुद्दों से जूझ रहे हैं पर एक तंत्रगत ब्यवस्था के तहत हमें सोचने के लिए मजबूर किया जा रहा है कि हमारा धर्म खतरे में हैं और ये सब मुद्दे गौण हैं अभी हमें धर्म बचाना है |
    
किसान खेती छोड़ रह है , हमारी शिक्षा ब्यवस्था दुनिया में कोई स्थान नहीं रखती , देश के अन्दर गरीब आदिवासियों को गोलियों से भूना जा रहा है , बात बात पर गलियों में भीड़ उग्र हो कर किसी न किसी को मौत के घाट उतार रहे है , पर हम इन सब बातों को बहस के केंद्र में नहीं लाना चाहते |

       कौन है वो लोग जो इतनी उग्रता समाज में फैला रहे हैं ? कौन है वो लोग जो हर मौत को जस्टिफाई कर रहे हैं ? कौन हैं वो लोग जो समाज की सच्चाई सामने लाने पर गोलियों से भून रहे हैं ? कौन हैं वो लोग वो भारत माता की जय के नारे लगा कर औरतों को रंडी ,वैश्या,छिनाल लिख रहे हैं ?

        फेसबुक ,ट्विटर पर इतना लम्बा लम्बा कंटेंट कहाँ से आ रहा है ? कोई तो लिख रहा होगा और संस्थागत तरीके से लिख रहा होगा | घटना के बाद घंटे भर में कैसे फेसबुक और ट्विटर का नीलापन जज्बातों के उमाड़ से बहने लगता है ? अगर वो कंटेंट मैं और आप अपने नाम से नहीं लिख रहे तो वो गुमनाम कौन लेखक है जो इतना जहर अपने हलक से उगल रहा है और हम धडाधड उसे शेयर कर रहे हैं |
      
दोषी कौन है ? केंद्र सरकार या राज्य सरकार या हम खुद ? क्या हम जो सोशल मिडिया पर फैला रहे हैं क्या हम वही बातें अपने परिवार के साथ साझा कर सकते हैं ? अगर किसी लड़की को हम रंडी या वैश्या कह रहे हैं तो क्या हम यही शब्द अपनी माँ,बहन या बेटी के लिए सुन सकते हैं ? अगर नहीं तो हम दोगला ब्यवहार कर रहे हैं समाज में |
       
सरकारों को चुनने में समझदारी दिखाओ | क्यूंकि आज जो खुद को स्थापित करने के लिए साम दाम दंड भेद का सहारा ले सकते हैं उन्हें कल जरूरत पड़ने पर तुम्हें भीड़ से कुचलवाने में वक़्त नहीं लगेगा | 

      विचारों को मत मरने दो , उन्हें स्थापित करो ,सवाल करो, सवालों को ख़त्म मत करो , सवाल पूछने वालों को ख़त्म मत करो | भीड़ का हिस्सा मत बनो क्यूंकि आज तुम भीड़ से अलग होकर अपनी बात नहीं कही तो कल तुम्हारी कहानी सुनने वाला कोई नहीं होगा |  आज गौरी लंकेश थी कल तुम होंगे और तुम ये भी नहीं कह पाओगे कि मैंने कभी कुछ नहीं कहा क्यूंकि वो इसी लिए हो रहा होगा क्यूंकि तुमने कभी कुछ नहीं कहा |     

        



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राखी वाली चिट्ठी और बराबरी की तैयारी

प्यारी बहिन
हाँ तुझे बार बार सताने वाला और सिर्फ पीछे से तेरा ध्यान रखने वाला भाई तुझे आज सीधे ख़त लिख रहा है | मुझे कई बार लगता था कि ये बातें मैं तुझ से कहूँ ज़िन्दगी के अलग अलग वक़्त पर पर मैं कभी कह नहीं पाया इस लिए आज तुझे बहुत कुछ कह रहा हूँ |
मैंने तुझे बहुत बार छोटी छोटी बातों पर सब का साथ न मिलने पर हारते हुए देखा है | बहुत बार चीजें हमारे नज़रिए में सही होती है पर सामने वाला का नजरिया वो सब नहीं देख पाता | अगर तुम्हें लगता है कि तुम सही हो या फिर तुम ख्वाइश रखती हो सही होने की तो भिड़ जाओ, किसी और के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए घर वालों से, जमाने से किसी से भी क्यूंकि जिस दिन तुम खुद को सही साबित कर दोगी उस दिन सारी दुनिया तुम्हारी मुट्ठी में होगी | इस दौरान अगर तुम हार के ठोकर खा भी गयी तब भी ये याद रखो कि तुम मजबूत हो के दो कदम आगे ही बढ़ी हो पीछे नहीं गिरी | हार के सवालों से डरो नहीं उस का भी सामना करो |

दुनिया कहती है नारी सहनशीलता की मूर्ति होती है , उन दुनिया वालों के इस विचार को किनारे डाल दो क्यूंकि तुम्हे अपनी ज़िन्दगी खुद गढ़नी है तुम्हारे परिवार वाले,तुम्हारे दोस्त,तुम्हारे ऑफिस वाले तुम्हें इस में मदद करेंगे पर तुम्हें खुद ही खुद को बनाना होगा | दुनिया को अपने चश्में से देखो ,सीखो नया कुछ रोजाना | खुद को कुछ चीजों तक में ही न समेट दो | अगर बाहर की तुम्हें अच्छी समझ हो तो घर की भी समझ तुम्हें उतनी ही होनी चाहिए | अगर तुम दुनिया के सामने प्रेजेंटेशन दे रही हो तो पाँव में मोच आने पर सरसों के तेल में लहसन गर्म करके मालिस करने पर दर्द कम होता है के ज्ञान की पोटली भी तुम्हारे पास होनी चाहिए |
तुम्हें मुझ से ज्यादा अच्छे से पता है कि जिस समाज में हम रहते हैं वहाँ महिला और पुरुष की बराबरी की बातें कम ही होती है | एक नजरिया यह है कि इस बात पे हंगामा करो कि मैं ये नहीं करुँगी , समाज हाय हाय, दूसरा तरीका ये हो सकता है कि मैं बदलाव की शुरुवात अपने घर से करूँ और पहले उन लोगों को बदलू जो मेरे अपने है | तुम पापा से कपड़े धुलने को कह सकती हो , मुझ से झाड़ू मारने को या कल के दिन जब तुम्हारी शादी हो जाए तो अपने पति को प्यार से बराबरी की बातें समझा सकती हो ,बराबरी में काम करना सिखा सकती हो ताकि कल अगर तुम्हारें बच्चे हों तो उनका जन्म उस घर में हो जहाँ सब बराबरी पर बिस्वास करतें हो | ये तरीका जरा लम्बा जरुर है पर पीढियां सुधारने वाला है |
रिश्ते हमारी ज़िन्दगी में वही काम करतें हैं जैसे साईकिल के पहिये के लिए बॉल बेयरिंग | हमें उस पर कभी कभी ग्रीस या तेल भी डालना पड़ता है जिससे साईकिल का पहिया अच्छे से चलता रहे | ज़िन्दगी के पहिये को बराबर घुमाने के लिए हमें रिश्तों को इज्ज़त और वक़्त का ग्रीस देना पड़ता है ताकि वो अच्छे से चल सकें | अगर तुम्हें कभी लगे कि ये रिश्ते तुम्हारी ज़िन्दगी में बड़ी रुकावट बन रहे हैं जो कि वक़्त और इज्ज़त की ग्रीस डालने से भी नहीं ठीक हो रहे तो खुद को उन रिश्तों से किनारे करने में ही भलाई है | किसी रिश्ते को इस कड़वाहट पर कभी मत छोड़ देना कि तुम्हें उन रिश्तों से नज़रें चुरानी पड़ें |       
   ज़िन्दगी में बड़े सपने देखो ,उन्हें हासिल करने की कोशिश करो जीतो,हारो,सीखो,घूमों क्यूंकि तुम्हें केवल तुम ही गढ़ सकती हो बाकी कोई और नहीं.
इस रक्षा बंधन मुझ से नहीं खुद से ये वचन लो कि तुम चाहे ज़िन्दगी की कोई भी मुश्किल हो ज़िन्दगी जीनें का फलसफा कभी नहीं खोओगी | क्यूंकि इस दुनिया में तुम्हारे लिए कोई सबसे इम्पोर्टेन्ट है तो वो सिर्फ तुम हो अपना ख़याल रखना |
तुम्हारा भाई
बिमल    

    
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रुको ...क्या किसी को हराना इतना जरुरी है ?

डियर ज़िन्दगी कैसे हो ?
होप तुम अच्छी ही होगी , आज तुम्हे ख़त लिखने को मन तो नहीं था पर कुछ मौका बन गया | अब तुम सोचोगे कि मौका कैसा ? तो मौका ये थी कि अपनी ज़िन्दगी की गुफ्तगू करने के लिए जो चंद नंबर मेरे पास थे उन्हें जब फोन लगाया तो कई नंबर उठे नहीं , कई नंबर कहीं और गुफ्तगू में व्यस्त थे | तो तब मुझे लगा की छोड़ो यार दूसरों को खुद अपनी ज़िन्दगी से ही बातचीत कर ली जाए |

ज़िन्दगी पता तुम्हें मेरे आसपास के लोग सब भाग रहे हैं , तेज बहुत तेज और भी तेज | पर हर शाम या कहें कि कुछ एक शाम बाद जब उन्हें कहीं पहुँचते नहीं देखता तो मन दुखी होता है | हम सब या तो फिर अपने गुजरे पल का रोना रो रहे होते हैं या फिर अपने आने वाले पल के लिए समेट रहे होते हैं बस इस पल में कोई नहीं रहना चाहता | पिछले साल जब मैं राजस्थान के अम्बेर फोर्ट में लाइट एंड साउंड शो देख रहा था तो मैंने जब बीच में एक बार नज़र उठा कर पीछे देखा तो 80% लोग अपने कैमरे से उस नज़ारे को कैद करने में जुटे पड़े थे | कोई उस वक़्त को अपने आँखों में कैद नहीं कर रहा था , यही तो करते हैं हम |

बोर्ड एग्जाम कुछ जगह ख़त्म हो गये कुछ जगह बाकी हैं | उस के बाद रिजल्ट आएगा और उस के बाद होगा अच्छे कॉलेज में एडमिशन वाला हाई प्रोफाइल ड्रामा | इस के अलावा एंट्रेंस टेस्ट जैसे नीट और आई.आई.टी जी के रिजल्ट भी आयेगें | मेरे लिए सब से ज्यादा कठिन महीने होते हैं मई से लेकर अगस्त तक, क्यूंकि इस में हमारे देश में सुसाइड रेट बहुत बढ़ जाता है | मुझे बहुत बुरा लगता है इस फैक्ट को जब भी मैं बार बार सुनता हूँ कि हमारा देश यूथ सुसाइड में नंबर 1 पर है | किसे दोष दें इन आत्महत्याओं का ? बच्चों को , उन के माँ बाप को या सोसाइटी को ? क्यूँ हम कभी ये नहीं समझ पाते कि किसी भी बड़े कॉलेज में पहुँच जाना ज़िन्दगी का आखिरी लक्ष्य नहीं हो सकता | ज्ञान और अच्छे मार्क्स के बीच में कोई संबंध नहीं है अच्छे मार्क्स लाना एक अच्छी प्लानिंग का नतीजा है न कि अच्छी पढाई का | दुनिया बदलने के लिए अगर अच्छे मार्क्स लाना ही जरुरी होता तो कहाँ हैं सालों साल की मेरिट लिस्ट वाले वो बच्चे ? क्यों गायब हो जाते हैं सिर्फ एक बार स्टार बनने के बाद वो ? मैं अच्छे मार्क्स का विरोध नहीं करता पर मुझे लगता है कि सिर्फ अच्छे मार्क्स लाना ज़िन्दगी की सफलता का सक्सेस मंत्र नहीं है |

मेरा भाई डॉ. है क्यूंकि वो ये चाहता है , मैं डॉ. नहीं हूँ क्यूंकि मैं ये नहीं चाहता | मुझे मजा आता है दुनिया घूमने में, नए नए लोगों से मिलने में, नई नई कहानियां लिखने में, दुनिया भर के युवाओं से मिलने में और मैं इस बात पर बहुत खुश हूँ | कुछ एक दिन पहले मेरी चचेरी छोटी बहिन ने मुझ से एक बात कही, उस ने कहा कि भैय्या मैं जब पूरे परिवार के सामने बड़े भैय्या की रिस्पेक्ट होते देखती हूँ तो मुझे आप के लिए बुरा लगता है , आप को बाहर वाले तो इतना रिस्पेक्ट देते हैं पर परिवार वाले नहीं समझ पाते | मैं चाहती हूँ कि आप इतने बड़े आदमी बन जाओ की आप बड़े भैय्या को हरा दो | उस के सवाल पर मैं उस के मन को पढ़ पा रहा था कि कैसे सोसाइटी का इफ़ेक्ट उस के दिमाग में ये असर पैदा कर रहा है कि वो दो भाइयों को उन के प्यार नहीं बल्कि उन के ओहदे की नज़र से देखे | मैंने उस का जवाब दिया कि ये मेरी ज़िन्दगी है और मैं किसी को हराने या किसी को कुछ दिखाने के लिए नहीं कर रहा हूँ | जो मैं कर रहा हूँ उसे मैंने चुना है और ये मेरी सच्चाई है कोई उस पर क्या सोचता है ये मेरी दिक्कत नहीं है | मैं भाई को कैसे हरा सकता हूँ जब कि हमारे रास्ते ही बिल्कुल अलग अलग हैं, और किसी को हराना ही क्यूँ है ? जब कभी लगे कि तुम भीड़ के साथ साथ भाग रहे हो या तुम्हें किसी को हराना है वो रुक जाओ वहीँ पे सोचो इस बात पे कि क्या किसी को हराना इतना जरुरी है ? अपनी ज़िन्दगी जियो और खुश हो के जियो | सुना होगा न जियो और जीने दो |  
ये ज़िन्दगी मेरी अपनी है,सब की ज़िन्दगी में उतार चढाव चलते रहते हैं और ये उतार चढ़ाव बताते हैं कि हम जिंदा है बस हौसला नहीं खोना है हमें | कोई इंसान या सोसाइटी इतनी ताकतवर नहीं हो सकती कि उस के एक सवाल या आरोप से मेरा पिछला अनुभव सारा धरा का धरा रह जाए | बात करो दुनिया भर में बहुत लोग हैं उस से अलग अलग मुद्दों पर बात करो | उन्हें समझो कैसे उन्होंने खुद और अपने ज्ञान को खड़ा किया है |दूसरे के ज्ञान से घबराओ नहीं , अपनी समझ पैदा करो | खुद के लिए लक्ष्य रखो ,खुद को हराओ तब देखो कि ज़िन्दगी में कैसा नयापन आता है |
बात करो अगर परेशान हो तो , क्यूंकि बात करना बहुत जरुरी है , कहानी लिखो ,कविता लिखो ,फेसबुक पर लिखो,ऑडियो रिकॉर्ड करो , ब्लॉग लिखो कुछ भी हो खुद को जाहिर करो हर हालत में | बस कभी अकेले मत परेशान हो |
आज के लिए बहुत बात हो गयी तुझ से मिलतें हैं फिर जल्दी नए किस्सों के साथ
तुम्हारा
जज्बात ए बिमल      


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