मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं
तुम्हारी शादी में आऊंगा , तय भी था मेरा न आना पर मैं
मजबूर हुआ रिया की खुद की कसम देने से...समझाया भी उसे कि कितना मुश्किल है मेरे
लिए वहां जाना...पर उस ने कहा बातें बहुत पुरानी है और कभी सुखी हुई जड़ों को पानी
दिखाने से वो हरी नहीं होती...
रिया के बातों के जवाब नहीं
थे मेरे पास और इतनी हिम्मत भी नहीं कि उस की दी कसम तोड़ दूँ ...
दिल्ली से टवेरा में रात का
सफर कर के सुबह शिमला पहुँचे तुम्हारे बताये हुए गेस्ट हाउस में बैग डाला और रिया
सीधे ही तुम्हारे घर हो ली आखिर उस की बेस्ट फ्रेंड की जो शादी थी कोई भी रश्म कोई
भी रिवाज़ को वो छोड़ना नहीं चाहती थी ।
मेहँदी की रात थी आज , तुम्हारे हाथों और पांव में मेहँदी लगी थी । कॉलेज के दिनों में बातों के
पुलिंदों में एक बात यह भी थी क़ि तुम्हारे हाथों में मेरे नाम की मेहँदी लगेगी,
पर वक़्त कहाँ किस्सागोहि पे यकीं करता है उसे कुछ और ही मंजूर था और
यही है कि तुम सज धज के हाथों में किसी और के नाम की मेहँदी लगाये हो और
मैं....तुम्हारी शादी का एक मेहमान ...
तुम बहुत सुन्दर लग रही
हो... मैंने कहा... और तुम ने डबडबाई हुई
आँखों से कुछ वक़्त एक टक देखा मुझे...काश तुम्हे मैं गले लगा सकता... तुम्हारी पीठ
पे थपथपाया...और तुम्हे जाने को कहा क्योंकि सब तुम्हारा इन्तजार कर रहे थे...
तुम्हारी डबडबाई आंखो के सवाल मुझे पता थे , पर मेरे पास उन सवालों के आज
भी जवाब नहीं हैं । ये रात गीत संगीत में ही खत्म हो गयी मैं भी जल्दी गेस्ट हॉउस
में आ गया था , एक पैग लिया... शराब कौन सी थी पता नहीं...
दो कड़वे घुट एक साथ ले रहा था मैं ...एक महबूबा की शादी का और खुद इस शराब की
कड़वाहट ...कौन ज्यादा कड़वा है ..इस के जवाब खोजते कब नींद आ गयी पता ही न चला...
अगले मेरी सुबह काफी लेट
हुई ,फोन को देखा तो रिया की 18 मिस्ड कॉल थी ...उफ्फ्फ ...डाँट
खाने के लिए खुद को तैयार कर के रिया को फोन लगाया तो उस ने फ़ोन काट दिया, उस के गुस्से को मैं जानता था पर थोड़ी देर में मोबाइल पे रिया का मैसेज
आया ...तैयार रहना तुम्हे मुझे और तुम्हें ब्यूटी पार्लर ले जाना है ..उफ्फ मैं
तुमसे अकेले में नहीं मिलना चाह रहा था पर मुझे सच में नहीं पता ज़िन्दगी बार बार मुझे ऐसे चौराहों पे क्यों
लाकर खड़ा कर देती है ?
दिन की 3 बजे के करीब तुम
मैं और रिया पार्लर के लिए निकले, एक तरफ रिया की बातें बंद नहीं हो रही और दूसरी
तरफ मैं खुद के कई सवालों से जूझ रहा था , तुम्हारी आँखों के सवाल मेरे
जहन में अब भी ज़िंदा है और कब तक रहेंगे पता नहीं ... जाते वक़्त खामोश ही रहा मैं
..
जब तुम पार्लर से बाहर आई
तो यकीं कर पाना मुश्किल था तुम ऐसे रूप में मेरे सामने थी जिस की सपने में भी
कल्पना मैंने नहीं की थी, खुबसूरत कहना तुम्हे उस वक़्त कम आंकने जैसा था...मुस्कुरा
दिया तुम्हें देख कर बस्स....
तुम कार में बैठ चुकी थी
रिया को पता नहीं क्यों वक़्त लग रहा था , हम दोनों की नज़रें मिली मैंने
दोनों हाथों से उस के हाथों को पकड़ा और कहा माफ़ी मांगी मुझ में हिम्मत नहीं है कि
मैं किसी का अभी सहारा बन सकूँ तुम्हे सराय बनना है और मुझे अभी मुसाफिर ही बने
रहना है..मुसाफिर सराय से दोस्ती नहीं करते .. क्योंकि उन्हें उस सराय को छोड़ एक
दिन आगे बढ़ जाना है... तुमने कहा जब पता
था कि तुम मुसाफिर हो फिर इस सराय के इतने करीब क्यों आये...
इतना कह के दोनों के हाथों
की जकड़न ढीली छूट गयी ...रिया भी आ चुकी थी तब तक ...और सीधे ही गाडी घर को मोड़ ली
..
तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ा
और मैं गेस्ट हॉउस में चेंज करने आ गया..लेट तक रुका ताकि तब तक बारात गेट तक
पहुँच जाए ।
जब मैं आया तब तक बारात
अंदर आ चुकी थी ,काले सूट में तुम्हारा राजकुमार अच्छा लग
रहा था..जलन नहीं थी उस से पता नहीं क्यों.. जितना बताया था तुमने उस के बारे में
तो सुकून था कि तुम अच्छे घर जा रही हो...
वरमाला के बाद फेरे थोडा
भारी गुजरे मुझ पे और उस के तुम्हारी मांग पे सिंदूर भरने के बाद पता नहीं क्यों
अपने आँसू रोक नहीं पाया मैं...रिया बगल में बैठ के सब देख रही थी उस ने भी कुछ
नहीं कहा और न ही रोका मुझे...दुःख था मुझे तुमसे दूर जाने का पर तुम्हे पाना नहीं
चाहता था मैं...
सुबह के तकरीबन 6 बज रहे थे
मैंने रिया को चलने को कहा बैग पहले ही रखवा चुका था गाडी में...
हाथ मिलाया तुम्हारे पति से
जब तुमने उसे दोस्त कह के मेरा परिचय दिया दोनों को ख़ुशी जीवन की शुभकामनाएं दे कर
पलट गया... एक नयी राह पे...
रास्ते भर काफी कुछ सोच रहा
था और खुद पे यकीं करना भी मुश्किल हो रहा था कि मैंने ये पल इतनी आराम से गुजार
लिया...आराम तो नहीं पर कोई गम नहीं है तुमने अपनी राह चुनी और मैंने अपनी....तुम
मेरी ज़िन्दगी का वो ए सपना थी जिसे मैं पाना नहीं चाहता था पर कभी खोना भी नहीं
चाहता था.... पर सपने कहाँ सच होते हैं...
और तभी रेडियो से गाना
बजा...
शामें मलंग सी ...रातें
सुरंग सी...
बागी उड़ान पे ही ना जाने
क्यों...
इलाही मेरा जी आये आये...
इलाही मेरा जी आये आये...
और गाडी शिमला की सर्पीली
रोड पे नीचे उतर रही थी..शायद लग रहा था ज़िन्दगी का एक रिश्ता भी एक असफल मुकाम के
बाद नीचे उतर रहा है...
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