मिटटी,पत्थर,धूल
इन्ही सब के बीच थी उस की ज़िन्दगी,
मजदूर जो थी वो...
दिन भर मेहनत
करती,कभी किसी से कुछ ना कहती
न कोई आगे,न कोई
पीछे, ना ही कोई दूर का कोई रिश्तेदार
होता भी क्यूँ? पैसा
जो ना था उस के पास|
मैं छोटा था जब तब
भी ज़िन्दगी उस की वैसे ही थी,
मेरी उम्र बढती गयी
तब भी ज़िन्दगी उस की वैसे ही थी|
और आज मेरा बेटा
छोटा है,पर उस की ज़िन्दगी में कोई बदलाव नहीं|
न कोई श्रृंगार,न
कोई लालिमा,न कोई ख़ुशी,
साल इतने बीते पर साड़ी
के रंग तक में भी कोई बदलाव नहीं,
ज़िन्दगी भर मेहनत,सिर्फ
दो वक़्त की रोटी के लिए
ना उस के घर कोई आता,
ना कहीं जाते ही देखा मैंने उसे आजतक,
न कभी बीमार पड़ती,न
कभी उस की दिनचर्या रूकती
सुना था मैंने शादी
के तीन रोज में ही पति चल बसा
क्या नाम था उस का
आज तक मुझे तो ये भी नहीं पता
नाम की उसे जरुरत ही
नहीं पड़ी|
क्या करती नाम का ?
न किसी को उस से
मतलब रहता,न ही उसे किसी से मतलब रहता
मैंने तो ताउम्र उस
के संघर्ष को देखा
पर अब उस के काम को
मेरा बेटा देखता है
एक दिन यूं ही पूछ
लिया उस ने
पापा उस औरत का नाम
क्या है???
जवाब मेरे पास नहीं था,
जवाब मेरे पास नहीं था,
पर पता नहीं कैसे
मुहँ से निकल पड़ा
कुंवारी बिधवा
realy gud supr....adhunik kavita bhav purn
ReplyDeletenice...
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