इस आधी रात में
जब कोई नहीं है साथ में
सिर्फ मै और मेरी तन्हाई...
अक्सर....
खामोश ही रहती है
कुछ न मुझ से कहती है....
सायं सायं मेरे कानो सिर्फ आवाजें आई हैं
ये भी तेरी यादों की परछाई है....
तुम होती...तो ये होता
तुम होती ...तो वो होता...
आज.....
तुम नहीं हो....तब भी जिंदा हूँ मै
जिंदा लाश तो नहीं....
खामोश बुत्त जरुर हूँ....
चाहतों के मायने थे क्या तेरे
कभी तो कुछ बताती
कुछ तो मुझ को समझती
समझता हूँ होशियार खुद को मै
पर ......
तेरे जज्बातों को न समझ सका
तेरे इरादों को न समझ सका....
कोई नहीं चाहे भले ही....
कोई नहीं है साथ मेरे....
मुझे तो अब आदत हो गयी है....
और मै खुश हूँ ...
क्यूँ इस आधी रात में...
जब कोई नहीं है साथ में....
तेरे यादों की सायं सायं कानो में आज भी आवाज़ करती हैं.....
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