मैं और गाँधी फ़ेलोशिप


हेल्लो दोस्तों
आज मुझे आप के सामने खड़े होने में बड़ा गर्व महसूस हो रहा है और इस की दो वजह हैं एक वजह तो ये कि मुझे हमेशा से ही उन युवा चेहरों से मिलने की इच्छा रहती है जिन के भरोसे कल हमारा देश चलने वाला है मैं बार बार उस उर्जा को महसूस करना चाहता हूँ इस लिए आप सब के बीच आया हूँ और दूसरी वजह कि उस रास्ते के बारें में आप सब को बताना जिस पर मैं चल रहा हूँ और हर बार गौरवान्वित महसूस करता हूँ| मेरे परिचय में मैडम ने आप को बताया कि मैं गाँधी फेलो हूँ जो राजस्थान के स्कूलों में काम कर रहा है |

क्योंकि मैं भी आप जैसे ही कभी स्कूल का छात्र रहा हूँ और स्कूलों में काम भी कर रहा हूँ तो पहला सवाल सब के दिमाग में यही आता है आखिर ये “फेलो” कहते किसे हैं ? और ये काम क्या करता है ?
आप लोग विद्यार्थी हैं और पढ़ रहे हैं और आप के शिक्षक आप को पढ़ा रहे हैं यानि वो नौकरी कर रहे हैं और पढ़ाई और नौकरी के बीच की एक कड़ी होती है जिसे “फ़ेलोशिप” कहा जाता है,यानि एक स्पेशल विषय पर जब पढ़ाई की जाति है और इस पढ़ाई के दौरान आप को कुछ सुविधाएँ भी दी जाती हैं उसे फ़ेलोशिप कहते हैं
 मैं जिस फ़ेलोशिप में हूँ उस का नाम “गाँधी फ़ेलोशिप” है| और इस में हम खुद पर यानि अपनी स्किल्स पर काम कर रहे हैं और हमारी स्किल्स  को डेवलप करने का जरिया बनाते हैं हर फेलो को दिए गये पांच स्कूल और उन स्कूल की कम्युनिटी| हम पांच स्कूल,उन स्कूलों के हेड मास्टर,अध्यापक,बच्चे और उन के पूरे गावं के साथ जुड़ के काम करते हैं |
अगर हम आम जिंदगियों को देखें तो हमारी सोच हमारे सपने तो बहुत बड़े बड़े होते हैं पर जब उन बड़े सपनो को सच करने की बात आती है तो हम अपने कदम पीछे ले लेते हैं और इस की सबसे बड़ी वजह ये है कि हम कभी अपने कम्फर्ट जोन से कभी बाहर नहीं आना चाहते और फ़ेलोशिप बार बार हर बार हमारे कम्फर्ट जोन को तोड़ कर हमें आगे बढ़ने में मदद करती है और बड़े सपनों को सच करने की ताकत देती है |
एक लाइन कहीं पढ़ी थी मैंने हमारे देश में नेताओं की कमी नहीं है अगर कमी है तो सही नेतृत्व की और गाँधी फ़ेलोशिप युवाओं के बीच एक नेतृत्व विकास कार्यक्रम है |
मीडिया की पढ़ाई करने के दौरान मैं एक सामाजिक बुराई “युवाओं के बीच बढती आत्महत्या की प्रवित्ति” के काफी नजदीक आया था इस टॉपिक पर गहन अध्ययन के बाद मुझे लगा कि मुझे इसी टॉपिक पर आगे काम करना है मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहता पर कैसे अपने कार्यक्रम को एक बड़ा स्वरुप दिया जाए इस की मुझे A..B..C..D… भी नहीं पता थी तब मैंने अपने अन्दर स्किल्स डेवलपमेंट के लिए गाँधी फ़ेलोशिप की राह चुनी |
हमारे फील्ड विजिट,स्कूल सेशंस,फ़ेलोशिप सेशंस हमारे अन्दर वो ताकत पैदा कर रहे हैं जिस से मुझे अपनी ज़िन्दगी में हजारों लाखों लोगों की जिंदगियों तक पहुँचने और उन की जिंदगियों को को बदलने में मदद मिलेगी |
हमारे साथी फेलो देश के अलग अलग कों से हैं और अलग अलग एजुकेशनल बैकग्राउंड से हैं अगर हम सब में कुछ समान है तो वो है इस दुनिया को बदलने के लिए बड़े सपने देखना और उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करना| और अपने सपनों के लिए वो अपने अन्दर काफी बदलाव ला भी रहे हैं अपने कम्फर्ट जोन को बार बार तोड़ रहे हैं |
दूसरों को जानने से पहले ज्यादा जरुरी है खुद को जानना और खुद को समझना क्यूंकि अगर मैं ये सवाल करूँ आप से कि खुद से पूछिए कि “मैं कौन हूँ ?” तो मैं बता सकता हूँ कि 99.99% लोगों के पास इस सवाल का जवाब नहीं होगा | खुद को अच्छे से जानना ही गाँधी फ़ेलोशिप का मुख्य उद्देश्य है |
शायद दो साल बाद मैं “मानसिक स्वास्थ्य” पर काम कर रहा हूँगा और इस विषय पर अच्छे से काम कैसे किया जायेगा मैं अभी सीख रहा हूँ |
बहुत कम मंच हैं जो आप को खुद को पहचानने और आप के अपने सपनों को सच करने की ताकत देते हैं और मुझे ख़ुशी है मैं एक ऐसी ही जगह पर हूँ |
अपने सपनों को जीना सीखो बंद आँखों से जरुर सपना देखो पर खुली आँखों से उन्हें पूरा करने के लिए जी जान लगा दो आप के पास यही वक़्त है अपने सपनों को पूरा करने का....

और आखिर में आप सभी का धन्यवाद मुझे उम्मीदें नज़र आ रहे हैं आप सभी के चेहरों पर उम्मीद है आप अपने देश की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे....       
धन्यवाद


(ये भाषण मेरे द्वारा एक स्कूल के बच्चों के लिए लिखा गया है )
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मैं वो और हमारा रिश्ता

वो बहुत सुन्दर थी और मैं दूर से सूप की चुस्कियां लेते हुए उसे डी.जे. पर डांस करते हुए देख रहा था, मौका मेरे एक दूर की रिश्तेदार की बेटी की शादी का था| काफी देर से उसे देख रहा था तो शायद उसे इस बात का एहसास हो गया और अचानक हमारी नज़रें मिली और दोनों ने ही नज़रें चुरा ली, मेरा अब उसे छुप छुप के देखने का दौर शुरू हुआ, और मैंने गौर किया कि अब वो भी मुझे देख रही थी| शादी की रश्मे चल रही थी जयमाला हो चुकी थी बाहरी मेहमान खाना खा कर निकल चुके थे| मैं मुंबई से सेमेस्टर ब्रेक में घर आया था तो मम्मी पापा के साथ दिल्ली इस शादी में चला आया, अब दूल्हा दुल्हन के खाने का दौर चला मैंने देखा कि वो लड़की दुल्हन के साथ ही खाना खा रही थी मेरी मौसी की बेटी ने मुझे भी खाना खाने बैठा दिया, और इत्तेफाकन मैं उस के बगल में बैठा और पहली ढंग की सोशली स्माइल हम दोनों ने आपस में पास की| खाना खाने के बाद फेरों की रश्म के लिए अभी वक़्त था तो हम सब दूल्हा दुल्हन की तरफ वाले आपस में बैठ पर मस्ती मार रहे थे कि अचानक मेरा फोन बजा वक़्त तक़रीबन एक बज रहा था, दोस्त का था और उसे कुछ मदद चाहिए थी तो मैं फोन सुनने अलग आया फोन सुन कर जब मैं वापस आया तो देखा उस ग्रुप में वो नहीं थी नज़रें इधर उधर दौड़ई तो देखा कि वो अगल से बैठी हुई थी मैंने भी वापस ग्रुप में जाना ठीक नहीं समझा और मैं उस की तरफ चल पड़ा, मैंने कुर्सी ली और उस के बगल में आकर पूछा – बैठ सकता हूँ उस ने कहा- हाँ स्यौर
और थोडा बहुत बातचीत का दौर शुरू हुआ उस ने पूछा कि तुम मुझे छुप छुप के देख रहे थे, तो मैंने भी कहा तुम्हारी नज़रें भी हमेशा उस तरफ कुछ खोज रही थी जिस तरफ मैं बैठा होता था... और इसी बात पर दोनों हंस पड़े...
दोनों की सिर्फ नज़रें आपस में नहीं टकराई थी बल्कि दिल में भी कुछ सिग्नल गये थे और रात भर फेरे देखते देखते और उस के आगे पीछे का वक़्त हम दोनों ने साथ गुजारा और एक दुसरे को समझने की कोशिश की पर जहाँ लोगों को एक दुसरे को समझने में पूरी ज़िन्दगी लग जाती है वहां एक रात में हम दोनों कौन से कद्दू में तीर मार देते? खैर हम दोनों ने ही एक दुसरे के साथ सुहाना वक़्त गुजारा..

और सुबह हो गयी विदाई की तैयारियां होने लगी, मेरे मम्मी पापा भी गेस्ट हाउस से दुल्हन के घर पर आ गये थे और मैं थोडा पापा से मिलने गया ये पूछने कि वापस जाने का क्या प्लान है ?
मैं पापा के साथ खड़ा ही था कि एक अंकल पापा से मिले, दोनों आपस में गले मिले और मैंने भी इन्फोर्मल्ली नमस्ते कर दिया, तो पापा ने टोक दिया रवि बेटा पांव छूओ मौसा जी के, ये तुम्हारे गोरखपुर वाले मौसा जी है मौसी भी आई है.. तो मैंने पांव छुवे और तभी एक औरत को मम्मी ने कहा ये मौसी है तो मैंने उन्हें भी नमस्ते किया| पापा ने उन से घर वर के बारे में पूछा और उन के बच्चों के बारे में भी और कहा कि अब तो डिम्पी बड़ी हो गयी होगी तो मौसा जी ने जवाब दिया हाँ काफी बड़ी हो गयी है आप ने तो बचपन में ही देखा था और उन्होंने आवाज़ दे कर एक लड़की को बुलाया और उसे कहा कि डिम्पी ये तुम्हारे दिल्ली वाले मौसी मौसा जी है और ये उन का बेटा रवि....

शिट ... व्हाट द फ़क ये है डिम्पी जिसे पूरी रात मैं पटाने की कोशिश कर रहा था वो मेरी कजन है..
पूरी रात की फेंटेसी उतर गयी, डिम्पी का चेहरा भी उतर चूका था.. हम दोनों एक दुसरे से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे... अब मुझे इस शादी से जल्द से जल्द घर निकलना था.. गिल्ट हो रहा था अपनी इस हरकत का...फिर अगले ही पल ध्यान आया कौन सा मैं वन साइडेड कर रहा था वो भी तो लाइन दे रही थी...
पर मुझे लगा कम से कम एक आखिरी बार तो मिल ही लूँ डिम्पी से, वो किनारे खड़ी थी दुल्हन की विदाई हो रही थी मैं उस के बगल में जा कर बोला सॉरी यार मुझे पता नहीं था... अच्छा जी कल रात तो बड़े स्टड बन रहे थे और अब सॉरी... वो बोली...  सॉरी बोल तो रहा हूँ मुझे पता नहीं था और तुम भी तो लाइन दे रही थी... वो मुस्कुराने लगी और उस ने भी कहा सॉरी .... भैय्या....

दर्जनों चप्पलों से सूत दिया हो मुझे ऐसा फील आ रहा था उस के भैय्या कहने से ... अब रुकने की हिम्मत नहीं बची बाय कहा उसे ..तब तक दुल्हन भी विदा हो चुकी थी घर भी खाली हो रहा था मैंने भी अपना सामान कार में रखा मम्मी पापा चलती कार से उन मौसी मौसा और डिम्पी को बाय कर रहे थे पर मुझ में तो पीछे पलटने के बाय करने हिम्मत भी नहीं बची थी...   
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किस्से जो मैं समेटना नहीं चाहता


कल उस का जन्मदिन था ये मैं भूल चूका था और इस में याद रखने लायक शायद अब वो मसाला बचा भी नहीं था क्यूंकि ज़िन्दगी आगे नहीं बहुत आगे बढ़ चुकी थी, और उस की याद दिलाने वाले दोस्त,गिफ्ट,पुरानी डायरियां,शायरियां,कवितायेँ सब कुछ बिखर चुके थे, और मुझे यादों के पन्ने पलटने में मजा नहीं आता तो वहां से भी उस की यादों के कुछ सिग्नल नहीं आते....
मैं कल शाम को यूँ ही घुमने निकल पड़ा,शाम को बाज़ार में चहल पहल थी,शहर के बीचों बीच में बची कुछ हरियाली की प्रतियों जिसे शायद लोग पार्क कहते हैं को देखने का मन हुआ,मैंने पार्क के बाहर अपनी गाडी खड़ी की और अन्दर घुमने लगा, एक चक्कर भी पूरा नहीं किया पता नहीं क्यूँ हलचल थी अन्दर, किस बात की पता नहीं,मन नहीं लगा और चाय पीने की तलब लगी, मैं बाहर आ गया और पार्क के ही पास एक रेस्टोरेंट की तरफ चल पडा, वो गप्पे बाज़ी का एक अड्डा हुआ करता था कभी हमारा,उस की चाय में अजीब सा नशा था जो हर बार दिमाग की वीणा के हर तार को हिला कर रख देता था, कभी शराब तो नहीं पी पर गारंटी के साथ कह सकता हूँ शराब में भी उस चाय के जैसा नशा नहीं होगा...
मैं जैसे ही वहां पंहुचा और अपनी कोने वाली सीट तलाशने लगा और किस्मत से वो खाली भी मिल गयी,वो सीट खिड़की के नजदीक थी और उस का एक अलग ही मजा था मैंने चाय आर्डर की,और इन्तजार करने लगा इसी दौरान व्हाट्स एप में आये खुच आलतू फालतू मेसेजों पर नज़र डालने लगा,तभी अन्दर वाले हॉल से जोर जोर से गानों और हू हल्ला की आवाजें आने लगी, वो आवाजें परेशान कर रही थी पर मना नहीं कर सकता था| और अचानक मेरा पुराना दोस्त निशांत हॉल से बाहर निकला और उस ने मुझे देख लिया, अरे बिमल कैसा है ?? और तू यहाँ?? मुझे थोडा पहचानने में वक़्त लगा पर याद आया कि ये मेरे कॉलेज का था जिस से ज्यादा बात चीत नहीं थी| मैंने कहा मैं ठीक हूँ पर तू यहाँ कैसे ?? उस ने कहा ये सब छोड़ तू रिया की पार्टी में आया है न तो बाहर क्यूँ बैठा है? मैंने उसे कहा नहीं यार उस से तो अब कोई कांटेक्ट नहीं है ब्रेकअप के बाद तो कभी मुलाकात भी नहीं हुई....
वो जिद्द करने लगा कि चल अन्दर पार्टी में चल कई और दोस्त भी हैं, मैंने कहा नहीं यार छोड़ और मुझे किसी काम से जल्दी निकलना है समझ... उस ने थोडा जिद्द की पर मैं भी अडिग रहा और वो अन्दर चला गया, आर्डर की हुई चाय आने में थोडा वक़्त लग रहा था पर निशांत अन्दर जा कर पूरा रायता फैला चूका था और मेरे कई दोस्त मुझ से मिलने बाहर आ गये अच्छा भी लग रहा था पुराने दोस्तों से मिलकर पर मेरी वजह से किसी की पार्टी के मेहमान बिखर रहे हैं इस बात का बुरा भी लग रहा था सब मुझे अन्दर पार्टी में ली जाने की बात कह रहे थे पर मैं भी जिद्दी था नहीं जा रहा था और मैं मन ही मन सोच भी रहा था कि कहा फंस गया तभी रिया बाहर आ गयी....
दिमाग के घंटे बजने लगे,पन्ने पलटने लगे यादों के और भी बहुत कुछ पर खुद को सम्हाला मैंने पूरे सात साल बाद उसे देख रहा था ज्यादा नहीं बदली थी वो,बस्स थोडा और सुन्दर हो गयी थी| मैं उसे देख के जम सा गया था पर वो नार्मल थी, किस्से मसहूर थे हम दोनों के और ब्रेकअप भी धमाकेदार हुआ था तो सारी नज़रें हम दोनों को ही देख रही थी उस ने स्माइल दी मुझे और हेल्लो कहा पर मैं तो जैम ही गया था तो हाय भी नहीं कह पाया, थोडा मेहनत कर के गर्दन हिला दी और बहुत ज्यादा कोशिश कर के थोडा स्माइल देने की कोशिश की, उस ने कहा बिमल हमे ज्वाइन करो मेरे बर्थ डे की पार्टी है, यादों का वो पन्ना पलटा जब उसे पहला बिर्थ डे विश मैं करता था, कोई और न कर पाए इस लिए 11:30 से ही उस से बात करता था, खैर मैंने उए बिर्थ डे विश किया और मेरे न चाहते हुए भी मेरे दोस्तों ने मुझे उठा लिया और अन्दर पार्टी हॉल में ले गये मैं बहुत ज्यादा अनकम्फटेबल फील कर रहा था, उतने बन्दों की भीड़ में भी अकेला महसूस कर रहा था और शायद ये रिया की नज़रों ने पकड़ लिए उसे पता ही था कि मुझे भीड़ पसंद नहीं और उस ने मुझ कोल्ड ड्रिंक का गिलास पकडाया मैंने थैंक्स कहा और हाल चाल पूछे, उस की आँखों में टप् टप् आंसूं गिरने लगे, और उस ने कहा बिमल तुम्हारी एक नासमझी ने मुझे और तुम्हे कितना दूर कर दिया तुम गये और पीछे मुड़ कर नहीं देखा,मैं आज भी तुम्हे प्यार करती हूँ..
मैंने उस के आंसू साफ़ किये मैंने उसे कहा बर्थ डे के दिन नहीं रोते, और पुरानी बातें भूल जाओ जो होता है अच्छे के लिए ही होता है हम साथ कभी नहीं रह पाते, और फैसला करने को तुमने मुझे कहा था कि अपनी कलम और मुझ में से चुन लो मैं तो तुम दोनों को ही एक साथ प्यार करता था, और तहे दिल से करता था, और शायद अगर तुम उस दिन वो सब न करती तो न मैं दुनिया घूम पाता और न ही ये सब लिख पाता... आज मैं जो कुछ भी हूँ तुम्हारे उस फैसले से ही हूँ....मैं अब तुम्हारी ज़िन्दगी में आना चाहती हूँ.... नहीं रिया बहुत देर हो चुकी है शायद अब मेरे दिल में वो प्यार नहीं रहा....बिमल मैं वो प्यार पैदा कर लूंगी ..नहीं रिया बहुत देर हो चुकी है अब .... तुम अब सिर्फ मेरी कहानियों का हिस्सा हो मेरी ज़िन्दगी का नहीं... मैंने जेब में हाथ डाला तो एक बेशकीमती पेन पडा था मैंने रिया को वो देते हुए कहा ये मेरी तरफ से गिफ्ट है तुम्हारे लिए और जल्द ही मैं चला जाऊंगा देश छोड़ कर मन हो तो इसे अपने पास रखना उस ने अपने आंसुओं को पोछते हुए कहा बिमल दे भी वो चीज रहे हो जिस ने तुम्हे मुझ से जुदा किया खैर रख लूंगी... मैंने उसे आखरी बार गले लगाया,वो हटना नहीं चाहती थी पर खुद को उस से किनारे किया और सब को बाय करने को हुआ पर अपने अपने डांस में सब मस्त थे तो नहीं कर पाया.. रात बढ़ रही थी ठंडक भी थी मैंने गाड़ी स्टार्ट की और घर की तरफ बढ़ गया लगा कि बहुत कुछ छोड़ के आगे बढ़ रहा हूँ पर इसे तो मैं कब का छोड़ चूका था किस्मत ने दुबारा मिलाने की शायद कोशिश की थी.... खैर छोड़ो पुरानी ज़िन्दगी के पन्ने पलटने की आदत मेरी तब भी नहीं थी और अब भी नहीं इसे भी एक कहानी में बदल कर किस्सा ख़त्म कर दूंगा....मैं घर पहुँच चूका था और पीछे बहुत कुछ छुट चूका था जिसे मैं समेटना नहीं चाहता था       
         
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