फिर भी हिंद को बदलना है...


हिंद में है आग क्यूँ?
लुट रहा समाज क्यूँ?
मिट रहे ज़ज्बात क्यूँ?
बिक गया ईमान क्यूँ??
कोई तो मुझे बताये...

जल रही क्यूँ आज नारी?
बढ़ी क्यूँ भ्रस्टाचार की बीमारी?
क्यूँ बिक रही है डिग्री सारी?
कौन से कल की है ये तैयारी?
कोई तो मुझे बुझाये...    

लोग सब बेमान क्यूँ?
जनता भूखों परेशान क्यूँ?
नेता इतने हराम क्यूँ ?
और प्रशासन नाकाम क्यूँ ?
कोई तो मुझे समझाए....

पस्त है यूवा पीढ़ी सारी...
और मस्त है जनता सारी... 
राह क्या है अब हमारी?
कैसे अंधियारे कल की सवारी?
कोई तो मुझे दिखाए ...

मिल जाये जवाब अगर
दुबारा सोचना फिर मगर
चाहे कठिन है ये डगर
फिर भी हिंद को बदलना है.....
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