मेरा जन्म उत्तराखंड के टिहरी जिले के एक छोटे से गांव् सिराई में 30-06-1990 को हुआ,पिताजी श्री राजेंद्र प्रसाद रतूड़ी स्वाथ्य निरीक्षक और माता जी श्रीमती गीता रतूड़ी शिक्षका हैं| मैं अपने परिवार में सबसे छोटा हूँ इसी लिए सब का लाडला रहा, मेरे बड़े भईया असीम रतूड़ी और दीदी रूचि का प्यार और डांट दोनों का मैने जम के लाभ उठाया है| पर एक नाम है जो इन नामों से सब से ऊपर है और जिस के बिना बिमल रतूड़ी की कल्पना भी नहीं की जा सकती मेरी दादी जी श्रीमती कमला रतूड़ी, मैं बचपन से ही दादी के साथ रहा हूँ मेरे दादी की ही हिम्मत थी जिन्होंने उस वक़्त मेरा हाथ थामा जिस वक़्त हम एक अनजान शहर देहरादून में आये,पापा और मम्मी मजबूर थे वो अपनी जॉब छोड़ कर मेरे साथ देहरादून नहीं आ सकते थे दादी का तब सहारा मिला, और केवल तब ही नहीं पूरा बचपन मैने दादी के साथ ही गुजारा क्यूंकि मम्मी को स्कूल जाना होता था, हमारे हर काम दादी ही करती थी और हैं उनको किसी दूसरे के किये काम पर भरोसा ही नहीं आता मुझे भी दादी के साथ रहना बहुत अच्छा लगता है, क्यूंकि दादी मेरे हर बात मानती है और मेरे लिए सब कुछ है,कक्षा 8 से में दादीजी के ही साथ देहरादून में हूँ|
लोग पूछते हैं बिमल तुमने इतने छोटी उम्र से लिखना सुरु कर दिया था ऐसे कैसे?
और इस पर मेरा जवाब ये है कि कक्षा 8 से तक़रीबन अकेले रहते रहते सोचने कि आदत पड़ गयी अकेले रहना बहुत अच्छा लगने लगा,हर चीज में एक नया नजरिया खोजने लगा था मैं, चीजों को बारीकी से देखने में मजा आता था, लोगों कि बातें,गरीबी,कहानियाँ,कवितायेँ,और सामाजिक मुद्दे मुझ पर असर डालने लगे, और मुख्य बात देहरादून आना मेरे जिद्द थी अपने माता पिता के सामने क्यूंकि में सोचता था कि देहरादून अमीरों का शहर है और मेरे मम्मी पापा दोनों नौकरी करते हैं तो हम भी अमीर हैं, देहरादून आने पर मेरा सब से पहला ये ही भ्रम टूटा जिस ने मुझे सब से ज्यादा सोचने पर मजबूर किया और जब आदमी अकेला रह जाता है तो उस के पास अपनी भड़ास निकालने का एक ही जरिया होता है पेन सो मैने भी कलम उठा ली और कागज काला करना शुरू कर दिया
कवितायेँ लिखी,लेख लिखे जो अख़बारों में छपने लगे और लोगों को पसंद आने लगे फिर कभी कभी लिखना लगातार लिखने में बदल गया, और फेसबुक में अकाउंट बनाने के तक़रीबन 6 महीने बाद ढंग से लिखना शुरू किया यहाँ एक दिन कुछ पंग्तियाँ लिखी लोगों को पसंद आई फिर यहाँ का कारवां भी चल पड़ा फिर एक ग्रुप शुरू किया जज्बात-ए-बिमल लोगों का जबरदस्त प्रतिकियाएँ मिलनी शुरू हुई,फिर लिखने के ऑफर आने शुरू हुए और मैं Utara live न्यूज़ पोर्टल से जुड़ गया लोगों को मेरा काम पसंद आने लगा और मुझ पर भरोसा बढ़ता गया|
फिर "नजरिया" क़ी शुरुवात हुई उस का और बिमल का दोनों का सफ़र जारी है...
पर कुछ नाम हैं जिन का साथ मेरे लिए बहुत मायने रखता है और मैने भगवान् को हमेशा उन के ही रूप में देखा मेरे माँ पापा दादी भाई आशीष नौटियाल,नीरज थपलियाल,दीपिका सेमवाल(खाली),प्रियंका,शुशोभिता,कैरोलिना शर्मा,आशिमा जोशी,प्रियंका टोडरिया.... और भी कई नाम हैं
मेरा सिर्फ एक ही सपना है कि बिमल भीड़ में खड़े आखिरी आदमी कि आवाज बन सके.... कोशिश जारी है आगे सब ऊपर वाले पर...................
लोग पूछते हैं बिमल तुमने इतने छोटी उम्र से लिखना सुरु कर दिया था ऐसे कैसे?
और इस पर मेरा जवाब ये है कि कक्षा 8 से तक़रीबन अकेले रहते रहते सोचने कि आदत पड़ गयी अकेले रहना बहुत अच्छा लगने लगा,हर चीज में एक नया नजरिया खोजने लगा था मैं, चीजों को बारीकी से देखने में मजा आता था, लोगों कि बातें,गरीबी,कहानियाँ,कवितायेँ,और सामाजिक मुद्दे मुझ पर असर डालने लगे, और मुख्य बात देहरादून आना मेरे जिद्द थी अपने माता पिता के सामने क्यूंकि में सोचता था कि देहरादून अमीरों का शहर है और मेरे मम्मी पापा दोनों नौकरी करते हैं तो हम भी अमीर हैं, देहरादून आने पर मेरा सब से पहला ये ही भ्रम टूटा जिस ने मुझे सब से ज्यादा सोचने पर मजबूर किया और जब आदमी अकेला रह जाता है तो उस के पास अपनी भड़ास निकालने का एक ही जरिया होता है पेन सो मैने भी कलम उठा ली और कागज काला करना शुरू कर दिया
कवितायेँ लिखी,लेख लिखे जो अख़बारों में छपने लगे और लोगों को पसंद आने लगे फिर कभी कभी लिखना लगातार लिखने में बदल गया, और फेसबुक में अकाउंट बनाने के तक़रीबन 6 महीने बाद ढंग से लिखना शुरू किया यहाँ एक दिन कुछ पंग्तियाँ लिखी लोगों को पसंद आई फिर यहाँ का कारवां भी चल पड़ा फिर एक ग्रुप शुरू किया जज्बात-ए-बिमल लोगों का जबरदस्त प्रतिकियाएँ मिलनी शुरू हुई,फिर लिखने के ऑफर आने शुरू हुए और मैं Utara live न्यूज़ पोर्टल से जुड़ गया लोगों को मेरा काम पसंद आने लगा और मुझ पर भरोसा बढ़ता गया|
फिर "नजरिया" क़ी शुरुवात हुई उस का और बिमल का दोनों का सफ़र जारी है...
पर कुछ नाम हैं जिन का साथ मेरे लिए बहुत मायने रखता है और मैने भगवान् को हमेशा उन के ही रूप में देखा मेरे माँ पापा दादी भाई आशीष नौटियाल,नीरज थपलियाल,दीपिका सेमवाल(खाली),प्रियंका,शुशोभिता,कैरोलिना शर्मा,आशिमा जोशी,प्रियंका टोडरिया.... और भी कई नाम हैं
मेरा सिर्फ एक ही सपना है कि बिमल भीड़ में खड़े आखिरी आदमी कि आवाज बन सके.... कोशिश जारी है आगे सब ऊपर वाले पर...................