नजरिया चाय और लोगों को परखने का


वो- सॉरी मैं थोडा लेट हो गयी .. तुम्हे ज्यादा देर तो नहीं हुई ...
मैं – अरे कोई नहीं ..मुझे पसंद है इंतज़ार करना ..या यूँ कहो कि इस इंतजार के वक़्त में मुझे कुछ खाली वक़्त मिल जाता है खुद से रूबरू होने का ...
वो – ओ हो... बड़ा ही डीप थॉट था... थोडा ऊपर से गुज़र गया ..पर कोई नी दुनिया भर की सारी बातें हमें ही समझ आयें जरुरी तो नहीं...
मैं – मैंने चौका मारा तो तुमने तो सीधे छक्का जड़ दिया ..खतरनाक प्रैक्टिकल थॉट दिया तुमने ... मैं इतना प्रैक्टिकली नहीं सोच पाता .. 
वो – पहले मैं भी नहीं सोचती थी फिर ऐसे ही... खैर क्या लोगे तुम ? 
मैं – यहाँ की चाय बड़ी बकवास है ...कुछ और ट्राय करते हैं... पिछले एक घंटे में 4 चाय पी चूका हूँ ...
वो – ओह सॉरी तुम पिछले एक घंटे से यहाँ हो... और अगर चाय इतनी ही बकवास थी तो 4 क्यूँ पी ?
मैं – 4 इसलिए पी क्यूंकि मैं पहली बार में ही कोई जजमेंट नहीं बना लेना चाहता था..मैं वक़्त देना चाहता था किसी भी बात को प्रूव होने में ...
वो – सिर्फ चाय के साथ ऐसा किया या सब जगह ये ही करते हो ? 
मैं – हा हा हा .. डिपेंड करता है ...
वो- चीज़ सैंडविच आर्डर करते हैं ..स्पेशल है यहाँ का ..
मैं – तुम अक्सर आती हो यहाँ ?
वो – हाँ अक्सर ... 
मैं - क्या मैं पहला हूँ जिसे तुम देखने आई हो ?
वो – तुम्हें क्या लगता है ?
मैं – अरे मेरे लगने से क्या होता है ? बताओ न 
वो – हा हा हा ... तुम्हारे सवाल का जवाब ये है या नहीं पर तुम तुम्हारे तरह के पहले हो ...
मैं – और मैं किस तरह का हूँ ?
वो – तुम्हें पढ़ा है मैंने और लिखावट में तो तुम बाकियों जैसे नहीं हो ..पता नहीं असल ज़िन्दगी में तुम कैसे हो ... मैंने अक्सर अपने आसपास बहरूपियों को पाया है 
मैं – एक सवाल करूँ ? थोडा पर्सनल है ..बुरा तो नहीं मानोगी ...
वो – पूछ लो.. सवालों से क्या डरना ...बी.जे.पी से थोडा न हूँ... हाँ अगर जवाब देने लायक नहीं हुआ तो नहीं दूंगी...
मैं – तुम्हारी रिंग फिंगर पे निशान है ...
वो – अरे वाह ऑब्जरवेशन बड़ा तगड़ा है तुम्हारा ... 
मैं – हर बदले हुए रंग की एक कहानी होती है और तुम्हारे हाथ में सिर्फ उस ऊँगली पर निशान था तो लगा पूछ लूँ..
वो – हाँ रिश्ता हुआ था मेरा ..उस की कहानियों पे मरती थी ..वो लड़का भी एक कहानी निकला ...कल्पना के कैनवास से ज्यादा कुछ नहीं ...बांसुरी सा खोखला.. तो सोचा क्यूँ नकली रिश्तों को ढोना.. रिंग उतार के फेंक दी नदी में 
मैं – रोई भी तुम ?
वो – तुम सवाल बहुत करते हो... बुद्ध से इंस्पायर हो क्या ?
मैं – मेरे सवाल का ये जवाब नहीं है 
 वो -हाँ थोड़ी देर बस ..किसी के लिए आंसू और वक़्त क्यूँ बर्बाद करना ..
मैं – फिर मुझ से मिलने क्यूँ आ गयी ? मैं भी तो लिखता हूँ 
वो – मैं एक बारी में ही कोई जजमेंट नहीं बना लेती ..वक़्त देती हूँ ...क्यूंकि हर कहानी एक जैसी नहीं होती ...
उस दिन उस मुलाकात में बहुत सी बातें हुई पर एक बात जो कॉमन थी वो था नज़रिया मेरा चाय को परखने का और उसका लोगों को...  



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