तेरा अस्तित्वा तेरी क्या पहचान है ???


है सुलगता कौन सा
  वो सवाल है,
है ये उफनता जोश या सिर्फ बवाल है,
कौन सी इबारत वो बेजा लड़की लिख गयी,
जिस से  पुरे देश में ये भूचाल है ||

था क्या ये अन्याय पहला दुनिया में?
फिर क्यूँ जनता इतनी क्यूँ हैरान हैं?
अब चिंगारियां क्यूँ शोला आज बनने लगी?
क्यूँ सड़क पर जनता आज परेशान है||

सुनी नहीं कहानी किसी ने अहिल्या की,  
क्यूँ आज भी इरोम की गली सुनसान है,  
है नया कुछ भी नहीं इस दुनिया में

क्या तू कथा द्रौपदी से अनजान है||

पितृ सत्ता नहीं है कोई पहाड़ी गावं 
  जिस की अब न कोई पहचान है
  पितृ सत्ता ये तो वो वट वृक्ष है...
जो हर पल छीनता नारी की हर पहचान है||

जो लिख गया सो लिख गया,
क्यूँ ढूँढती तू नारी अपनी पहचान है,
हजारों दामिनियाँ मर गयी
रूह उन की अब भी न्याय से अनजान है||

कब तक सुलगेगा ये सवाल 
  नारी आज भी  तेरा अस्तित्वा तेरी क्या पहचान है ??? 
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1 comment:

  1. तुम्हरी इस कविता की जितनी तारीफ की जाय वो कम है ! तुमने औरत के मन में उठने वाले सवाल को पूछा है जो हर दिन एक औरत सोचती है और खुद से पूछती है की क्यों, क्यों हमेशा उसे ही वजह बनाते है लोग और सजा भी उसे ही मिलती है? क्यों हमेशा उसे ही सहना पड़ता है!

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